Monday, March 25, 2013

जख्म ( गजल )

गुमराह न करो आंसुओं को बहने दो

जलता है जिगर तो जलते रहने दो

बदलता है बक्त पल-पल नजराने 

बौछारें बारिश की कभी धूप सहने दो 

तूफान अकसर निकलते हैं राह देखो 

टपकता है पानी वहां जहाँ छत न हो 

कब तक बचोगे सावन तो आना ही है 

हर रूत को जी लो जब यूँ जीना ही है 

कहाँ कहाँ देगा ये दस्तक तू 'फरियादी'

जख्म खुद छुपते है सीने के तो रहने दे ! - गजल - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Wednesday, March 6, 2013

नेता


मुझ को भी नेता बनना है

कोई बता दे मुझको,

कहाँ, कब, क्या पढना है,

मैं भी अरमान सजाये बैठा,

मुझ को भी नेता बनना है !

झूट बोलकर ताली बजवाना,

मन को मेरे भी भाता है,

निकलूं जब चौराहे पर,

राही देख मुझे घबराता है ! 

भरी सभा में शोर मचाना,

ये तो पहले से ही आता है !

दो अपनों को कैंसे लड़ना,

ये कहाँ सिखा जाता है ! 

पहन कर खादी सच है क्या .?

आदमी नेता बनजाता है !  - रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’ 



Saturday, March 2, 2013

गजल


निगाहें उन तश्वीरों को रंग भरती हैं

जो चेहरे पे अपनी लकीरें रखती है

हृदय की धड़कन भी कम नहीं होती

एहसास के दीप ये जलाये रखतीं हैं 

कब के फेंक देते उस ‘नकाब’ को हम

पर ‘मौसम’ के लिए ये साथ रखते है

कहीं भिगोये न ये बूंदें ‘तन’ फरियादी

यूँ ही नहीं यादों की रेत हम रखते हैं - गजल राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

नोट : ये मेरी प्रथम गजल है या यूँ समझिये गजल की सीड़ियों पर निगाह उतरी है गजल की मुझे जानकारी नहीं है फिर भी मैं अपने हृदय की आवाज को अनसुना नहीं कर पाया आशा है सभी मित्रों के स्नेह और आशीर्वाद के रूप में मुझे गजल की बारीकियां सिखने को मिलेंगी, त्रुटी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | 



  

Wednesday, February 27, 2013

समय चक्र


जगाता रहा

समय का चाबुक

जन जन को !

निगाहों पर

तश्वीरों के निसान

उभर आते !

सोई आँखों में

सपने बनकर

बिचरते हैं !

संकेत देते

बढ़ते कदमो को

संभलने का !

इंसानी तन

लिप्त था लालसा में

नजरें फेरे !

संभले कैंसे

रफ़्तार पगों की

बेखबर दौड़े ! रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’



Tuesday, February 26, 2013

मैं तो पानी हूँ


नमन करूँ मैं इस धरती माँ को,

जिसने मुझको आधार दिया,

पल पल मर कर जीने का

सपना ये साकार किया !

हिम शिखर के चरणों से मैं,

दुःख मिटाने निकला था,

किसी ने रोका मुझे भंवर में,

कोई प्यासा दूर खड़ा था !

कभी आँखों से टपका मैं,

कभी बादल बनकर बरसा हूँ,

कभी सिमट कर इस माटी में,

नदी नालों में बहता हूँ !

कब कहाँ किसके काम आऊँ,

मैं कहाँ इतना ज्ञानी हूँ,

सब के तन मिटे इस माटी में,

मैं तो फिर भी पानी हूँ ! – रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’


Wednesday, February 13, 2013

विकाश कु उजालू


या विकाश की जोत

कै निर्भागिन जैगा होली

भुलाक अपनों की पीड़ा

विरानो मा माया घोली !

जख जख तक यी आँखी

देख्नु कु जांदी

देखिक ये विकाश तै

खौल्ये सी रह जांदी

देखा यूँ दानी आँखियों माँ

क्या – क्या आज छूप्यून च

दौह्ल सी फुकेंनी जुकड़ी

प्राण मुछालू बन्युं च !  गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'















Friday, January 25, 2013

आशंकित मन

लुट रही तन की गठरी,

मन पर आशंका ठहरी है,

किस ओर बढ़ाएं पग अपने,

हर आँख शिकारी बन पहरी है !

मूल भूल कर संस्कृति का,

पनप रही रंग लहरी है 

उन्माद भरे हैं मस्तिष्क अब,

दिख रही ये खाई गहरी है ! - रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'




Saturday, January 19, 2013

धरती

ये धरती कब क्या कुछ कहती है

सब कुछ अपने पर सहती है,

तूफान उड़ा ले जाते मिटटी,

सीना फाड़ के नदी बहती है !

सूर्यदेव को यूँ  देखो तो,

हर रोज आग उगलता है,

चाँद की शीतल छाया से भी,

हिमखंड धरा पर पिघलता है !

ऋतुयें आकर जख्म कुदेरती,

घटायें अपना रंग जमाती,

अम्बर की वो नीली चादर,

पल पल इसको रोज़ सताती !

हम सब का ये बोझ उठाकर,

परोपकार का मार्ग दिखाती,

सहन शीलता धर्मं है अपना,

हमको जीवन जीना सिखाती !  -  रचना  - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

















Thursday, January 17, 2013

हाइकू 

मेरी आँखों में 

मंजिल की राह है 

मुझे जीने दो ! - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Wednesday, January 9, 2013

आंसुओं का क्या है

जब तन दुखी हो,

जब मन ख़ुशी हो,

निकल आते हैं ये,

इन आंसुओं का क्या !

रोकें भी तो कैंसे इनको,

कोसें भी तो कैंसे इनको,

बिन जुवान के बोलते देखो,

हर भाव को तोलते देखो,

तश्वीर ही बन लेते हैं,

सुख दुःख को गौर से देखो !

कारण जो भी हो आने का,

संकेत उम्दा है दर्शाने का,

जो न बदला कभी हवा से,

ये वो आंसू है अपना सा का ! - रचना --- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'














Saturday, December 1, 2012

जग्गा जग्गा की ठोकरियोंन किस्मत जग्गैली,


पहाड़ मा शैहरी देखिक,
नेअथ बिगड़ जांदी,
आपणो की सुध नि च,
बीराणों तै चांदी !  बीराणों तै चांदी !

हंसदा खेलदा घरबार
छोड़ी आ जांदा,
हरीं भरीं पुंगडी पतवाडी,
शहर मा क्या पांदा !

माकन किरायाकू,
बिसैणु भी नि च,
कोठियों माँ धोणु भांडा,
बथैण भी कै मु च !

जग्गा जग्गा की ठोकरियोंन,
किस्मत जग्गैली,
चला पहाडू मेरा भाइयों, 
मिन बाटु खुज्जाली ! गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'





 

Monday, October 15, 2012

देश को बचाना है


है सौगंध तुम्हें भारत माँ की,
इस माटी पर उपकार करो,
लाज बचानी है माँ की अब 
तो संसद के उस पार चलो !

लोकतंत्र की अस्मत का देखो,
कैंसे चीथड़े-चिथड़े कर डाले हैं,
जनसंख्या दिखती नहीं उतनी,
जितने हर शहर में घोटाले हैं ! ....रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 



Wednesday, October 10, 2012

फूल को तोड़ लेते

निर्जीव पत्थर को हम , 

देव मानते चले हैं अपना, 

मुस्कराते फूल तोड़ कर, 

रोज करते है एक गुनाह !..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Thursday, October 4, 2012

अगर मैं रूक गयी तो


सोचो मेरे बारे में भी,
मैं थकने लगी हूँ अब,
सदियों से चलते चलते,
अब पाँव मेरे उखड़ने लगे हैं !

तुमने अपने जीवन को,
सरल सहज बना लिया है,
मेरे हर कदम को,
अदृश्य सा बना दिया है !

मेरा नहीं तो कम से कम 
अपना ख्याल कीजिये,
जो पौधे काट रहे हो,
उनको उगा भी दीजिये ! 

मेरा आँचल पौधे ही हैं,
मेरा जीवन है छाया,
लहर चले जब उसके तन की,
तब महके मेरी काया !

मैं महकूँ तो जग महकेगा,
मैं चलूँ तो जग मचलेगा,
मेरी लहर के हर पहलू में,
सब का जीवन चहकेगा .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

नोट : आज इन्सान अपने जीवन के लिए प्रकृति का हर प्रकार से दोहन कर रहा है, सब कुछ तो कृत्रिम बन रहा है .........लेकिन कभी इन्सान ने हवा और पानी के बारे में नहीं सोचा, जिन पर पूर्णरूप से जीवन निर्भर है, इस प्रस्थिति को देख कर आज हवा पर कुछ शव्द समिटे है आप सब मित्रों की प्रतिक्रिया मेरे इस शव्दों को आधार दे पायेगी  



Wednesday, October 3, 2012

बापू तुम्हे आज पुकारते हैं


बापू तुम्हे आज वही पुकारते हैं, 
हर चौरह पर तुम्हारे नाम से जो भागते हैं, 
देते है वो दलील हिंद को बचाने की,
मगर तुम्हारे हर अंजाम को लांघते हैं !

खबर नहीं अपने क़दमों की उन्हें,
दुसरे के क़दमों को रोकते हैं,
तुम्हारी दी राह को कर अनदेखा,
गैरों की राह पर देश को झोकते हैं !

लुट कर अस्मत इस देश की 
महल खुद के बनाते हैं,
कुर्सी हर हाल में हो उनकी,
बेटों को भी चुनाव लड़ते हैं !

गिद्ध सा झपटे हैं ये कुर्सी पर,
घोटालों का अम्बर लगते हैं,
ये कैंसी राह है अहिंसा की बापू,
तुम्हारे नाम पर देश को सताते हैं ! रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Saturday, September 29, 2012

ये खेल निराला है


टांग खिंच कर अपनों की, 
जहाँ ख़ुशी मानते हैं लोग,
दे कर धोखा अपने को ही 
करते चतुराई का उपयोग !

खरीद पोख्त का मायावी,
बढ रहा अब ये कारोबार,
गाँव गरीवों से नोट चुराकर,
करते खुल कर यहाँ व्यापर !

देश धर्म से ऊपर उठ कर,
खुद को कहते पालनहार,
वोट मांगने दर पर पहुंचे,
देखो इनको कितने लाचार !

बन विजयी देखो इनको,
लगते राणा के अवतार,
लुट पाट में गजनी बन बैठे,
भूल गए लोगों का उपकार !

बड़े बड़े महारथी यहाँ,
चोरी का तगमा पहने हैं,
पूती है कालिख हर चहरे पर,
अकेले अकेले ये सहमे है ! -!!!!! रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

नोट: शव्द सारांश 

1. राणा - महाराणा प्रताप 
2. गजनी - मोहमद गजनी 

Monday, September 24, 2012

जन्म का कारण उदासी है


ह्रदय के उदासी आलम से,

कविता का जन्म होता है !

लोग पढ़ वाह वाही करते हैं,

हृदय बादल सा रोता है !

आँखों से निकलता ही नहीं नीर,

और कई पीर एहसासों में बह जाते हैं !

कोई बोलना ही नहीं चाहता मन की,

और शव्द फिर भी कह जाते हैं !

मगर दीखता है किस को ये,

लोग पढ़ कर चले जाते हैं !

शव्द हँसते हैं हमारे हमी पर,

हम को रोज़ चिढाते हैं !  

मन की घुटन कहाँ दफ़न करें अब,

हर रोज़ शव्दों पे चिता लगाते हैं  ! ........ रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Wednesday, September 19, 2012

ये जीवन कुछ ऐंसा भी है


विन दर्पण में देखे हम,

जीवन की मांग भरते हैं,

सुइयां घडी की पकड़ के,

सोते हैं और जागते हैं !

यादों में लेके जो चलते हैं हम,

वो कहाँ राहों में हमें मिलते हैं !!!!!!!!! रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
 


Tuesday, September 4, 2012

बथौंउं


फुर्र फुर्र औंदी यु डांडियों कु बथौंउं,

जुकुड़ी मा मेरी कुद्ग्याली लगणु !

घर गौं की खुद यु समुणु लागी,

तिसोली आन्ख्यो की प्यास बुझणु !! ..........गीत राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  




सांसों का आशियाना


निकले कदम कितने ही आगे,
हाथ कुदरत ने आज भी थामा है !
ये जीवन तब तक चलता है अपना,
जब तक सांसों का इस पर आशियाना है !!.....रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 


Saturday, September 1, 2012

सांसों को को देखता ही नहीं

दिल ले गया था कोई कभी 
अब तो जिस्म ही बेजान है !
सांसों को कोई देखता ही नहीं, 
पत्थर भी कहने को यहाँ भगवान  है !! .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Friday, August 31, 2012

मैं पत्थर ही सही

मैं पत्थर ही सही पर,

पुत्र हिमालय का हूँ !

मुझ पर नजरें लाखों की थी,

मैं तो निशाना कुछ नज़रों का हूँ !

मुझे लूटने कितने आये,

हर एक ने शीश नवाया !

लहू दिया सब ने अपना,

व्यर्थ में जीवन अपना गवाया ! .....रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'






Thursday, August 30, 2012

हम मुसाफिर है


न बांध मुझे हृदय की डोरी से,

मैं खुद डोरी से बंध के आया हूँ !

अम्बर में जो उडाता बादल,

समझ ले उसका मैं साया हूँ !! ....रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
 









Saturday, August 4, 2012

अँधेरा

कदम खुद ही चलते है 

अँधेरे के निशा ढूंढ़ने !

रोक न पायें जब खुद को,

हम अँधेरे को क्यों  दोष दें !

उजाला हर किसी की ओढनी,   

हम अँधेरे को ही ओढलें !

उजालों ने थकाया हमें 

निगाहों ने लुटाया हमें !

क़दमों ने भी पकड़ी वही राह,

फिर रास्तों को क्यों हम दोष दें !

मुस्कुराता है वो चाँद भी,

अँधेरी ही राह पर,

फिर जगमगाते तारों को,

हम क्यों  दोष दें ! .........रचना  - राजेन्द्र सिंह कुँवर  'फरियादी'






Saturday, July 21, 2012

मुझे आजादी चाहिए


मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए
रोती बिलखती सर पटकती रही मैं
अब मेरी आवाज को एक आवाज चाहिए
जी रही हूँ कड़वे घूँट पीकर
न मेरी राह में कांटे उगाइये
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए
पराये मेरे दुःख पे आंसू बहा रहे हैं
मेरे जख्मों पे फिर भी मरहम लगा रहे हैं
जिन्हें पाल पोसकर नाम दिया अपना
मरघट में वो ही मुझे जला रहे हैं
बिलायती बहू के जख्मों से नहीं डरती मैं
अपनों की नजरों से मरती हूँ मैं
सामर्थ मिल रही मेरे पगों को फिर भी
हर तूफान से अकेले ही लड़ती हूँ मैं
मैं अपने ही घर में कैद हूँ
मुझे अपनों से ही आजादी चाहिए...........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी''



(नोट: अपने हिंदुस्तान में ही हिंदी को हर कदम पर अपमानित होना पड़ रहा है ये हिंदुस्तान के अस्तित्व पर ये सवालिया निशान लगता है)

Wednesday, July 18, 2012

मेरा पहाडू

न टपकौउ तौं आंसूं तै 
निर्भागी जुकड़ी मा चुभी जांदा 
घंतुलियों मा समाली खुद
दुनिया कै क्यांकू दिखौन्दा
लगली खुद तब ऊं तै जब ठोकर खौला
कपाली खुज्लंदी तब तैमु ओला,
समुण समाल्यी रखी गाड गदनियों तै
सव्द्येउ ल्गाणु रही काफू हिलांस तै
बणु की घस्यरी नि दिखेंदी,
न ग्वारै छोरों की बांसुरी रै
न टपकौउ तौं आंसूं तै
निर्भागी जुकड़ी मा चुभी जांदा
घंतुलियों मा समाली खुद
दुनिया कै क्यांकू दिखौन्दा ........! गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Tuesday, July 3, 2012

बनू तो क्या बनू

न पास मेरे धन दौलत है,
न जनमत का भंडार। 
सिमित चंद इरादे हैं, 
जीवन जीने का आधार 
न राही मिला कोई अपना, 
न मंजिल पर दीखता है 
निकलता हूँ जिस गली पे 
हर कोई वहां बिकता है 
फिर बनू तो क्या बनू ........
सपनो के सुनहरे पथ पर,
अपने राह रोके मिलते हैं  
फूल वही मन हर्षाते सबका,
काँटों में जो खिलते हैं 
फिर बनू तो क्या बनू ........
कोयला भी आग में ताप कर,
रंग नहीं बदलता है 
संघर्ष पथ पर जलता सूरज 
यूँ तो हर रोज निकलता है
फिर बनू तो क्या बनू ..... ।  ....रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'




Thursday, June 21, 2012

सभ्यता



क्या करें इस सभ्यता का,
इंसानियत को निगले जो जा रही है !
लूट कर सुख चैन, विषाद  का,
दीपक जो जला रही है !
हर ओर घना कोहरा है इसका,
सुख का क्षण कहीं दीखता है क्या .....?
कहाँ इंसानियत मानव के अन्दर,
पग - पग पर देखो विकता है क्या ..?
पानी प्यास मिटा नहीं सकता,
भूख को अनाज लुभा नहीं सकता !
धन दौलत के अम्बार भी देखो,
कुदरती नींद दिला नहीं सकता !
बहती नदियों को सुखा गयी,
अडिंग हिमालय को हिला गयी !
क्या संतोष मिला इस मानव को,
कदम - कदम पे देखो रुला रही !
छोर छुड़ाकर धरती का,
ले उडी मानव को चाँद की ओर !
मानवता को बाँध रही है,
प्रलोभन की ये विषैली डोर ! 
फ़ैल रहा उन्माद धरा पर,
अब रुकने का कहीं नाम नहीं !
मानव के हृदय में अब,
मानवता के लिए दाम नहीं .......... रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

सी यू ई टी (CUET) और बोर्ड परीक्षा का बोझ कब निकलेगा।

मेरा देश कहाँ जा रहा है। आँखें खोल के देखो।  सी यू ई टी ( CUET) के रूप में सरकार का यह बहुत बड़ा नकारा कदम साबित होने वाला है। इस निर्णय के र...