Wednesday, February 27, 2013

समय चक्र


जगाता रहा

समय का चाबुक

जन जन को !

निगाहों पर

तश्वीरों के निसान

उभर आते !

सोई आँखों में

सपने बनकर

बिचरते हैं !

संकेत देते

बढ़ते कदमो को

संभलने का !

इंसानी तन

लिप्त था लालसा में

नजरें फेरे !

संभले कैंसे

रफ़्तार पगों की

बेखबर दौड़े ! रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’



1 comment:

Jyoti khare said...

समय चक्र जीवन का आधार है
आपकी रचना ने इसे अनुभूति भी दे दी है
सुंदर रचना बधाई

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