तेरे रुपहले कुंजों की हंसी,
मैं एक बार देखना चाहता हूँ,
कर लेना नफरत जी भरकर,
मैं  राग  तुम्हारे  ही  गाता  हूँ !
सोचता हूँ तुम्हारी पलकों तले,
आंधियाँ   कैंसी   छा   पायी,
सावन कितना ही हो अँधियारा,
हरियाली उसने ही दिखलायी !
न नज़रों को जकडो यूँ परदे में,
दमन से यादें क्या मिटा पाओगी,
मांगे  सदी  तुम  से   कुर्वानी,
नाम  मेरा  क्या  दे   पाओगी!
है  मंजूर   तुम्हें  ये   सब  तो,
ध्यान कुछ इतना भी रख लेना,
जले चिता जब मेरे अरमानो की,

 
 
