Sunday, July 28, 2019

उँगलियों का क्या इन्हें नचाते रहो।

यदि आप अंग्रेजी की रोटी खा कर हिंदी से प्यास बुझाने की सोच रहे हो तो यह एक सपना भर है। शुद्ध हिंदी वालों को आजकल गार्ड इंटरव्यू वो क्या कहते है साक्षात्कार वाली क्यू अरे क्षमा लाईन या पंक्ति ठीक रहेगी खड़े भी नही होने देते, गेट फिर गलती हो गयी चारदीवारी के मुख दरवाजे से अन्दर घुसने से पहले रजिस्ट्रर में इंट्री करनी होती है हाँ इस पर कोई संयास नही होगा इसके लिए पाँचवी पास भी यही शब्द यूज करता है, और हम तो भारतीय हैं साईन शब्द हस्ताक्षर को खा चुका आप गिनिए अपने आप को हिंदी की पंक्ति में भाई हम तो मिक्सी में पड़े मसालों की तरह बन गये न हिंदी के रहे न अंग्रेजी के हुये। इसके बावजूद लोग हमें पहाड़ी कहते हैं थोड़ा लय का लिहाज है गुरु, बस उसके अलावा हमारे पास कुछ नही है जमी गीली है आसमाँ टपक रहा है। आखिर कब तक पेड़ों की छाया में धूप से बचते रहेंगे। हमें तो बिना रोटी और चावल खाये नींद भी नही आती। तुम क्या जानो साँस कैंसे लेते हैं बाँसुरी की धुन भी साँस की पैरवी करती है। उँगलियों का क्या! इन्हें नचाते रहो। जय हो।

#बिखरेअक्षरोंकासंगठन

Friday, July 26, 2019

******* अक्षर *******

किस्मत तुम्हारी भी नही
किस्मत हमारी भी नही
कितना चाहो बिखर जाओ
पर रहोगे सदैव पंक्तियों में।

किस्मत तुम्हारी भी नही
किस्मत हमारी भी नही
पीढ़ियाँ कितनी बदल दो
पर रहोगे सदैव गिनतियों में। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'





Monday, July 8, 2019

अभिरुचि शिक्षा


दुनियाँ में हर इंशान के अंदर भिन्न भिन्न अभिरुचियों के सैलाव अंगड़ाई लेते रहते हैं यदि आप इनको पकड़ पाते हैं तो निश्चित ही आप रचनात्मक अभिरुचि के परम साधक बन सकते हैं। समय और उम्र के अनुरूप हर जीव की रुचि परिवर्तित होती रहती है इन सभी प्रकृति परिवर्तनों के बावजूद भी यदि अभिरुचि व्यक्ति को अपनी ओर खींचती हो तो निश्चित आपकी मंजिल उधर ही है। शिक्षा के साथ साथ रचनात्मकता का निखार होना भी अति आवश्यक है आज यदि टेक्नोलॉजी पर गहराई से नजर दौड़ाई जाय तो रचनात्मकता ज्यादा प्रभावी है यही उत्कृष्ट सफलता का मूल राज भी है। आज जानते हैं  नागार्जुन संदुपतला जी द्वारा बाँसुरी पर उँगलियों की चाल को कैंसे प्रभावी बनाया जाय। फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब के साथ साथ जितने भी सोशियल मीडिया है यदि हम उनका उचित उपयोग कर पायें तो आजीविका का भी एक साधन हमारे पास उपलब्ध हो सकता है।  
#बाँसुरी
#शिक्षा
#स्कूल
#गुरुकुल
#अभिरुचि










Tuesday, July 2, 2019

बीमार सा कुछ तन लगता है,
बीरान सा कुछ मन लगता है।
खिला रही है जिंदगी फिर से,
क्यों ऐंसा ये स्वपन लगता है।

ये मौसम भी बदलता है ऐंसे,
मेघों को छोड सूरज पकड़ता है।
चिपकता है कीचड़ सा पाँव में,
मिट्टी को छोड रफ्तार जकड़ता है। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Monday, July 1, 2019

तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया।

पग पग पर बैठे हैं सब वो
मान लूँ कैंसे तुम ही रब हो।
शक्ल सूरत के भंडार नही हैं
जलते क्यों हो अँगार नही हैं।

तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया।

बहते जल सा है निर्मल मन
गीली मिट्टी है चर्चित ये तन।
कभी धुलता है कभी घुलता है
रहो किनारे यूँ करो जतन।

धूप छाव को लेकर चलते
तन-मन को लेप न करते।
नजरों के इन पहरों पर तो
कैंसे हम यूँ खेद न करते।

तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'






मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।