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Friday, January 25, 2013
Saturday, January 19, 2013
धरती
ये धरती कब क्या कुछ कहती है
सब कुछ अपने पर सहती है,
तूफान उड़ा ले जाते मिटटी,
सीना फाड़ के नदी बहती है !
सूर्यदेव को यूँ देखो तो,
हर रोज आग उगलता है,
चाँद की शीतल छाया से भी,
हिमखंड धरा पर पिघलता है !
ऋतुयें आकर जख्म कुदेरती,
घटायें अपना रंग जमाती,
अम्बर की वो नीली चादर,
पल पल इसको रोज़ सताती !
हम सब का ये बोझ उठाकर,
परोपकार का मार्ग दिखाती,
सहन शीलता धर्मं है अपना,
हमको जीवन जीना सिखाती ! - रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
सब कुछ अपने पर सहती है,
तूफान उड़ा ले जाते मिटटी,
सीना फाड़ के नदी बहती है !
सूर्यदेव को यूँ देखो तो,
हर रोज आग उगलता है,
चाँद की शीतल छाया से भी,
हिमखंड धरा पर पिघलता है !
ऋतुयें आकर जख्म कुदेरती,
घटायें अपना रंग जमाती,
अम्बर की वो नीली चादर,
पल पल इसको रोज़ सताती !
हम सब का ये बोझ उठाकर,
परोपकार का मार्ग दिखाती,
सहन शीलता धर्मं है अपना,
हमको जीवन जीना सिखाती ! - रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Wednesday, January 9, 2013
आंसुओं का क्या है
जब तन दुखी हो,
जब मन ख़ुशी हो,
निकल आते हैं ये,
इन आंसुओं का क्या !
रोकें भी तो कैंसे इनको,
कोसें भी तो कैंसे इनको,
बिन जुवान के बोलते देखो,
हर भाव को तोलते देखो,
तश्वीर ही बन लेते हैं,
सुख दुःख को गौर से देखो !
कारण जो भी हो आने का,
संकेत उम्दा है दर्शाने का,
जो न बदला कभी हवा से,
ये वो आंसू है अपना सा का ! - रचना --- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
जब मन ख़ुशी हो,
निकल आते हैं ये,
इन आंसुओं का क्या !
रोकें भी तो कैंसे इनको,
कोसें भी तो कैंसे इनको,
बिन जुवान के बोलते देखो,
हर भाव को तोलते देखो,
तश्वीर ही बन लेते हैं,
सुख दुःख को गौर से देखो !
कारण जो भी हो आने का,
संकेत उम्दा है दर्शाने का,
जो न बदला कभी हवा से,
ये वो आंसू है अपना सा का ! - रचना --- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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