Monday, September 24, 2012

जन्म का कारण उदासी है


ह्रदय के उदासी आलम से,

कविता का जन्म होता है !

लोग पढ़ वाह वाही करते हैं,

हृदय बादल सा रोता है !

आँखों से निकलता ही नहीं नीर,

और कई पीर एहसासों में बह जाते हैं !

कोई बोलना ही नहीं चाहता मन की,

और शव्द फिर भी कह जाते हैं !

मगर दीखता है किस को ये,

लोग पढ़ कर चले जाते हैं !

शव्द हँसते हैं हमारे हमी पर,

हम को रोज़ चिढाते हैं !  

मन की घुटन कहाँ दफ़न करें अब,

हर रोज़ शव्दों पे चिता लगाते हैं  ! ........ रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

3 comments:

सुनीता शर्मा 'नन्ही' said...

वास्तविकता ब्यान करती आपकी इस रचना हेतु बधाई भाई राज ,सत्य तो है ही की शब्द ह्रदय के वे उद्गार होते हैं जिनके भाव को समझना हर किसी के वश में नही ,और जो समझ लें वे साहित्य श्रेणी के लोग होते हैं जो केवल वाह ! वाही ही नही अपितु मार्गदर्शी भी बनते हैं !

अज़ीज़ जौनपुरी said...

bhvon se paripurn prastuti

Kailash Sharma said...

मन की घुटन कहाँ दफ़न करें अब,

हर रोज़ शव्दों पे चिता लगाते हैं ! .

....बहुत खूब! बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

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