ह्रदय के उदासी आलम से,
कविता का जन्म होता है !
लोग पढ़ वाह वाही करते हैं,
हृदय बादल सा रोता है !
आँखों से निकलता ही नहीं नीर,
और कई पीर एहसासों में बह जाते हैं !
कोई बोलना ही नहीं चाहता मन की,
और शव्द फिर भी कह जाते हैं !
मगर दीखता है किस को ये,
लोग पढ़ कर चले जाते हैं !
शव्द हँसते हैं हमारे हमी पर,
हम को रोज़ चिढाते हैं !
मन की घुटन कहाँ दफ़न करें अब,
हर रोज़ शव्दों पे चिता लगाते हैं ! ........ रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
3 comments:
वास्तविकता ब्यान करती आपकी इस रचना हेतु बधाई भाई राज ,सत्य तो है ही की शब्द ह्रदय के वे उद्गार होते हैं जिनके भाव को समझना हर किसी के वश में नही ,और जो समझ लें वे साहित्य श्रेणी के लोग होते हैं जो केवल वाह ! वाही ही नही अपितु मार्गदर्शी भी बनते हैं !
bhvon se paripurn prastuti
मन की घुटन कहाँ दफ़न करें अब,
हर रोज़ शव्दों पे चिता लगाते हैं ! .
....बहुत खूब! बहुत सुन्दर भावमयी रचना...
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