Thursday, November 28, 2019

बथुआ, बथुवा, Bathuva, बथुवा के फायदे

बथुआ या बथुवा को अंग्रेजी में Lamb's Quarters कहते है, इसका वैज्ञानिक नाम Chenopodium album है।

साग और रायता बना कर बथुआ अनादि काल से खाया जाता  रहा है लेकिन क्या आपको पता है कि विश्व की सबसे पुरानी महल बनाने की पुस्तक शिल्प शास्त्र में लिखा है कि हमारे बुजुर्ग अपने घरों को हरा रंग करने के लिए प्लस्तर में बथुवा मिलाते थे और हमारी बुजुर्ग सिर से ढेरे व फयास (डैंड्रफ) साफ करने के लिए बथुवै के पानी से बाल धोया करती। बथुवा गुणों की खान है और भारत में ऐसी ऐसी जड़ी बूटियां हैं तभी तो मेरा भारत महान है।

बथुवै में क्या क्या है? मतलब कौन कौन से विटामिन और मिनरल्स?

तो सुने, बथुवे में क्या नहीं है? बथुवा विटामिन B1, B2, B3, B5, B6, B9 और विटामिन C से भरपूर है तथा बथुवे में कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटाशियम, सोडियम व जिंक आदि मिनरल्स हैं। 100 ग्राम कच्चे बथुवे यानि पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं। कुल मिलाकर 43  Kcal होती है।

जब बथुवा शीत (मट्ठा, लस्सी) या दही में मिला दिया जाता है तो यह किसी भी मांसाहार से ज्यादा प्रोटीन वाला व किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से ज्यादा सुपाच्य व पौष्टिक आहार बन जाता है, और साथ में बाजरे या मक्का की रोटी, मक्खन व गुड़ की डळी हो तो इस खाने के लिए देवता भी तरसते हैं।

जब हम बीमार होते हैं तो आजकल डॉक्टर सबसे पहले विटामिन की गोली ही खाने की सलाह देते हैं ना? गर्भवती महिला को खासतौर पर विटामिन बी, सी व लोहे की गोली बताई जाती है और बथुवे में वो सबकुछ है ही, कहने का मतलब है कि बथुवा पहलवानो से लेकर गर्भवती महिलाओं तक, बच्चों से लेकर बूढों तक, सबके लिए अमृत समान है।

यह साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। बथुए के साग का सही मात्रा में सेवन किया जाए तो निरोग रहने के लिए सबसे उत्तम औषधि है।  बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें। नमक न मिलाएँ तो अच्छा है, यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो काला नमक मिलाएँ और देशी गाय के घी से छौंक लगाएँ। बथुए का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें। बथुवे में जिंक होता है जो कि शुक्राणु वर्धक है मतलब किसी भाई को जिस्मानी कमजोरी हो तो उसको भी दूर कर दे बथुवा।

बथुवा कब्ज दूर करता है और अगर पेट साफ रहेगा तो कोई भी बीमारी शरीर में लगेगी ही नहीं, ताकत और स्फूर्ति बनी रहेगी।

कहने का मतलब है कि जब तक इस मौसम में बथुए का साग मिलता रहे, नित्य इसकी सब्जी खाएँ। बथुए का रस, उबाला हुआ पानी पीएँ और तो और *यह खराब लीवर को भी ठीक कर देता है।

पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शक्कर मिलाकर नित्य पिएँ तो पथरी टूटकर बाहर निकल आएगी।

मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें। आधा रहने पर छानकर पी जाएँ। मासिक धर्म खुलकर साफ आएगा। आँखों में सूजन, लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ।

पेशाब के रोगी बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास, दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें। बथुए को निचोड़कर पानी निकालकर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें। स्वाद के लिए नींबू जीरा, जरा सी काली मिर्च और काला नमक लें और पी जाएँ।

आप ने अपने दादा दादी से ये कहते जरूर सुना होगा कि हमने तो सारी उम्र अंग्रेजी दवा की एक गोली भी नहीं ली। उनके स्वास्थ्य व ताकत का राज यही बथुवा ही है।

मकान को रंगने से लेकर खाने व दवाई तक बथुवा काम आता है और हाँ सिर के बाल क्या करेंगे शैम्पू इसके आगे।
हम आज बथुवे को भी कोंधरा, चौळाई, सांठी, भाँखड़ी आदि सैकड़ों आयुर्वेदिक औषधियों की बजाय खरपतवार समझते हैं।



बाथवे की अधिक जानकारी के लिए निम्न वीडियो जरूर सुने। 





Monday, November 25, 2019

परमल, गुजकरेला, किंकोड़, घुनगड़ी और मीठा करेला Kankoda

पहाड़ की संस्कृतियहां के खान-पान की बात ही अलग है। यहां के अनाज तो गुणों का खान हैं
ही, सब्जियां भी पौष्टिक तत्वों से भरपूर है। ऐसी ही खास पहाड़ी सब्जी है मीठा करेला, जिसे
अलग-अलग जगहों पर अलग नाम से जाना जाता है। कुछ लोग इसे परमला कहते हैं कई जगह
ये ककोड़ा के नाम से जानी जाती है।

शहरों में इसे राम करेला कहा जाता है। इसे ये नाम इसके गुणों की वजह से मिला है। इसे परमल, गुजकरेला, किंकोड़ा और घुनगड़ी भी कहा जाता है। अगर आप ठेठ पहाड़ी हैं तो मीठा करेला की सब्जी आपने जरूर खाई होगी। ये पहाड़ी सब्जी गुणों की खान हैं, अगस्त से लेकर नवंबर तक ये सब्जी पहाड़ में बेलों पर खूब उगती है।

इससे जुड़ी एक और मजेदार बात आपको बताते हैं दरअसल ये गुणों की खान तो है ही साथ ही
इसकी सब्जी बेहद स्वादिष्ट होती है अगस्त से लेकर नवंबर तक ये पहाड़ों में खूब उगता है अगर
हम आपको इसके गुणों के बारे में बताना शुरू करेंगे तो आप भी इस पहाड़ी सब्जी के मुरीद हो
जाएंगे।

एक शोध में पता चला है कि इसमें न केवल पर्याप्त मात्रा में आयरन मौजूद है, बल्कि
शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट और खून को साफ करने वाले तत्व भी
हैं।

आप जानते ही होंगे कि आयरन तत्व न होने से एनीमिया, सिरदर्द या चक्कर आना,
हीमोग्लोबिन बनने में परेशानी होना जैसी परेशानियां शरीर को पस्त कर देती हैं। इसके अलावा
एंटीऑक्सिडेंट अक्‍सर अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य और बीमारियों को रोकने का काम करते
है।

कैंसर से बचाने, आंखों की रोशनी के लिए, मजबूत लिवर के लिए एंटी ऑक्सीडेंट शानदार
चीज है।करेला और वह भी मीठा। बात भले ही गले नहीं उतर रही हो, लेकिन है सोलह आने सच।
वैसे यह करेला चीनी की तरह मीठा नहीं होता, लेकिन कड़वा न होने के कारण इसे मीठा करेला कहते हैं।


पहाड़ में इसे ज्यादातर कंकोड़ा और कई इलाकों में परबल, राम करेला आदि नामों से भी जाना जाता है। कंकोड़ा ऊंचाई वाले इलाकों में अगस्त से लेकर नवंबर तक उगने वाली सब्जी है। पहाड़ में बरसात की सब्जियों के आखिरी पायदान पर यह लोगों के पोषण के काम आता है। हल्के पीले व हरे रंग और छोटे- छोटे कांटों वाली इस सब्जी मिनटों में तैयार हो जाती है।

बनाने की प्रक्रिया भी अन्य सब्जियों की तरह ही है। हां! यह जरूर ध्यान रखें कि कढ़ाई में छौंकते-छौंकते और अल्टा-पल्टी कर हल्की भाप देते ही कंकोड़े की सब्जी बनकर तैयार हो जाती है। कंकोड़े की की सूखी सब्जी जितनी जायकेदार होती है, उतनी ही आलण (बेसन का घोल) डालकर तैयार की गई तरीदार सब्जी भी। इसके अलावा कंकोड़े के सुक्सों की सब्जी भी बेहद स्वादिष्ट होती है।

सीजन में आप कंकोड़ों को सुखाकर किसी भी मौसम में आप सुक्सों की सब्जी बना सकते हैं। सुक्सों को भिगोकर बनाई गई तरीदार सब्जी का भी कोई जवाब नहीं। सब्जी के
साथ इसके बीज खाने में खराब लगते हैं। लेकिन, यदि बीजों को अलग से भूनकर खाने में आनंद आता है।

जब कंकोड़े छोटे-छोटे होते हैं तो उन्हें कच्चा भी खाया जा सकता है। कच्चे खाने में यह खूब स्वादिष्ट
लगते हैं और ककड़ी (खीरा) की तरह हल्की महक देते हैं। कड़वा करेला जहां डायबिटीज का दुश्मन है, वहीं मीठा करेला यानी कंकोड़ा भी डायबिटीज की प्रभावशाली दवा है।

सभी तरह के चर्म रोग व जलन में भी यह उपयोगी है। इसकी पत्तियों का रस पेट के कीड़ों को मारने सहायक है। कुष्ठ रोग में भी कंकोड़ा को लाभकारी माना जाता है। इसका स्वरस कील-मुहांसों को ठीक करने के भी काम आता है, जबकि इसकी जड़ को सुखाकर बनाया गए चूर्ण का लेप चर्म रोगों के लिए बहुत उपयोगी है।एक शोध में पता चला है कि कंकोड़ा में न केवल पर्याप्त मात्रा में आयरन मौजूद है, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले एंटीऑक्सीडेंट और खून को साफ करने वाले तत्व भी इसमें हैं।

बता दें कि आयरन की कमी होने से एनीमिया, सिरदर्द, चक्कर आना, हीमोग्लोबिन बनने में परेशानी होना जैसी परेशानियां शरीर को पस्त कर देती हैं। इसके अलावा एंटीऑक्सीडेंट अक्सर अच्छे स्वास्थ्य और बीमारियों को रोकने का काम करते है।

कंकोड़ा फाइबर, प्रोटीन और कॉर्बोहाइड्रेट की भी खान है।इसके पौधे पर बीमारियों का प्रकोप भी नहीं होता, जिस कारण यह पहाड़ों में खूब पनपता है। अब तो देहरादून व हल्द्वानी जैसे शहरों में कंकोड़ा मिलने लगा है।

कंकोड़ा लौकी कुल की सब्जी है। इसका वैज्ञानिक नाम सिलेंथरा पेडाटा (एल) स्चार्ड है।
इसका एक नाम राम करेला भी है। यह नाम कैसे पड़ा, इस बारे में किसी को जानकारी नहीं, लेकिन किंवदंती है कि भगवान राम ने वनवास के दौरान इसका सेवन किया था। सो, इसे राम करेला कहा जाने लगा। भले ही सीमांत में बहुतायत में मिलने वाले मीठे करेले को सब्जी के तौर पर पहचान मिली है।

लेकिन अपने स्वाद के लिए पहचाने जाने वाला मीठा करेला औषधीय गुणों से भी भरपूर है। शोध में पता चला है कि इसमें न केवल पर्याप्त मात्रा में आयरन मौजूद है, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट और खून को साफ करने वाले तत्व भी हैं। मीठा करेला सीमांत के किसानों की आय का जरिया भी बना है।

जिला मुख्यालय के बाजार में बिकने वाला मीठा करेला लोगों को खूब भा रहा है। मीठा करेला को उत्तराखंड में कई नामों से जाना जाता है। प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में इसे परला, मीठा करेला, राम करेला, गुजकरेला, काकोड़े, किंकोड़ा, घुनगड़ी, केकुरा आदि नामों से पहचान मिली है।
नेपाल में इसे बडेला कहा जाता है।

इसका वैज्ञानिक नाम सिलेंथरा पेडाटा स्चार्ड है। सितंबर से लेकर दिसंबर तक ये सब्जी पहाड़ में बेलों पर खूब उगती है। आम तौर पर मीठा या राम करेले को सब्जी के तौर पर जाना जाता है। लेकिन जानकारी के अभाव में लोग इसके औषधीय गुणों से अंजान हैं।

इसमें पर्याप्त मात्रा में आयरन मौजूद है। साथ ही इसमें प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट और खून को साफ करने वाले तत्व मौजूद हैं। आखों की रोशनी बढ़ाने के लिए भी मीठा करेला रामवाण है। इसे फाइबर, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की खान भी कहा जाता है।

इसका नाम राम करेला या मीठा करेला क्यों पड़ा किसी को भी इसकी जानकारी नहीं है। लेकिन किवदंती के अनुसार वनवास के दौरान राम के इसका सेवन करने से इसे राम करेले के नाम से प्रसिद्धि मिली। खासकर यह डायबिटीज के लिए कारगर सिद्ध होता है।

आप जानते होंगे की कड़वा करेला जहां डायबिटीज का दुश्मन है, वहीं मीठा करेला यानी कंकोड़ा भी डायबिटीज की प्रभावशाली दवा है। सभी तरह के चर्म रोग व जलन में भी यह उपयोगी है। इसकी पत्तियों का रस पेट के कीड़ों को मारने सहायक है।

कुष्ठ रोग में भी कंकोड़ा को लाभकारी माना जाता है। इसका स्वरस कील-मुहांसों को ठीक करने के भी काम आता है, जबकि इसकी जड़ को सुखाकर बनाया गए चूर्ण का लेप चर्मरोगों के लिए बहुत उपयोगी है। सिर्फ मीठा करेला या कड़वा करेला ही हमारे स्वास्थ को सुचारु रूप से नहीं
चलाते बल्कि सभी प्राकृतिक सब्जिया हमारे शरीर को स्वस्थ बनाये रखती है। 






Wednesday, November 13, 2019

कॉपी पेस्ट प्रोटेक्ट सामग्री को कैंसे कॉपी करें

अक्सर हम लोगों को पढ़ते पढ़ते कई वेब साइटों पर कुछ अच्छी सामग्री पा लेते हैं मगर वो कॉपी नही हो पाती है क्योंकि वेबसाईट के ऑनर ने उसे प्रोटेक्ट किया हुआ होता है। और यह बहुत अच्छी बात भी है क्योंकि उनकी मेहनत है जब भी हमें उस लेख को पढ़ना पड़ेगा या तो उस वेबसाईट पर जाना पड़ेगा या उसको किसी फाईल में सेव करना पड़ेगा। मगर जब यह बात किसी विषय बस्तु की हो जैंसे अलग अलग परीक्षाओं में आने वाले प्रश्न पत्रों की हो तो आखिर कितना समय बर्बाद होगा इसी के मध्यनजर आज हम सीखेंगे की किसी वेबसाईट की प्रोटेक्ट सामग्री को कैंसे हम सरलता से कॉपी कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए सीखो सिखाओ की निम्न वीडियो द्वारा जानते हैं।







Sunday, November 3, 2019

हनारा गाँव सिरसेड़ Hamara Gaon Sirsed

आपना घर गाँव भला किसे अच्छा नही लगता मगर हमारे गाँव की बात की कुछ अलग है, कई सारी जाती के लोग हमारे गाँव मे रहते हैं, आज गाँव मे छोटे-बड़े का भेद भाव नही है। जैंसा देखने की दृष्टि से लग रहा है वैसा ही यह सम्पन्न भी है। गाँव में कठैत, भंडारी, कुँवर, नेगी, रावत, बनमाळ इस तरह की जन जातियाँ निवास करती हैं। शिक्षा की दृष्टि से यह पूर्णतया साक्षर है।  यदि देखा जाय तो 10 से 55 की उम्र तक कोई भी आज अशिक्षित नही है। गाँव में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अध्यापक, युवा जुझारू एवं संघर्षशील अध्यापकों के कारण क्षेत्र में शिक्षा का स्तर काफी अच्छा है। गाँव के लोग पूर्व समय से ही सेना, पुलिस, होटल, एवं अन्य सरकारी सेवाओं में अपनी सेवा देते रहे हैं उन्हीं के अनुसरण के कारण आज भी काफी संख्या में युवा सेना, पुलिस, अध्यापन के साथ साथ अन्य सरकारी सेवाओं एवं स्वरोजगार की ओर भी बढ़ रहे हैं। हमारे गाँव का नाम सिरसेड़ (कडकोट पट्टी ) कीर्तिनगर, देवप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।  पूरा गांव देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें।  हमें आशा ही नही बल्कि पूरी उम्मीद है आप गाँव के प्रकृति नाजारों का आनन्द लेंगे। भविष्य में गाँव के इतिहास को जानने के लिए गाँव का रुख करेंगे। हमारे गाँव मे आप सभी स्नेहीजनों का हार्दिक स्वागत है।




मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।