Friday, June 26, 2015

'यूँ तो हम पत्थर हैँ'


यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे
और रेतीली राह के स्तंभ हैँ
चेतन जगत की बात हो जब
पल-पल बदलते मौसम हैँ ।
किसी की ठोकर बन गये
बन गए किसी की पतवार
किसी ने यूँ रौँदा राह तले
बिखर गए जलते से अंगार ।
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे
डुबते हुए अश्को से निकले
सीख ले कोई हम से चलना
पल-पल यूँ आँख न मिचले ।
किसी ने लहरों मे भी छोड़ा
किसी ने मिट्टी मे दफनाया है
जिनकी नजरों ने चुबोए थे काँटे
उनकी आँखों ने ही अपनाया है ।
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे । - गीत @ सर्वाधिकार सुरक्षित एवं पूर्व प्रकाशित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

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