Thursday, October 4, 2012

अगर मैं रूक गयी तो


सोचो मेरे बारे में भी,
मैं थकने लगी हूँ अब,
सदियों से चलते चलते,
अब पाँव मेरे उखड़ने लगे हैं !

तुमने अपने जीवन को,
सरल सहज बना लिया है,
मेरे हर कदम को,
अदृश्य सा बना दिया है !

मेरा नहीं तो कम से कम 
अपना ख्याल कीजिये,
जो पौधे काट रहे हो,
उनको उगा भी दीजिये ! 

मेरा आँचल पौधे ही हैं,
मेरा जीवन है छाया,
लहर चले जब उसके तन की,
तब महके मेरी काया !

मैं महकूँ तो जग महकेगा,
मैं चलूँ तो जग मचलेगा,
मेरी लहर के हर पहलू में,
सब का जीवन चहकेगा .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

नोट : आज इन्सान अपने जीवन के लिए प्रकृति का हर प्रकार से दोहन कर रहा है, सब कुछ तो कृत्रिम बन रहा है .........लेकिन कभी इन्सान ने हवा और पानी के बारे में नहीं सोचा, जिन पर पूर्णरूप से जीवन निर्भर है, इस प्रस्थिति को देख कर आज हवा पर कुछ शव्द समिटे है आप सब मित्रों की प्रतिक्रिया मेरे इस शव्दों को आधार दे पायेगी  



4 comments:

मन्टू कुमार said...

एक बेबस..लाचारी...और हम ही है इसके लिए जिम्मेदार |
बहुत खूब...अपने शब्दों में हवा की पीड़ा,वाकई शानदार |

सादर|

shashi purwar said...

sarthak rachna rajendra ji badhai

मेरा मन पंछी सा said...

सुन्दर और सार्थक भाव लिए
रचना...
:-)

mridula pradhan said...

sachchi baat likhi hai.....

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