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Thursday, January 7, 2016
Wednesday, January 6, 2016
फौजी
कब तक सीना छलनी यूँ सरहद पर,
करवाता रहेगा अपना फौजी।
चुप बैठें हैं घौर तपोवन में जैंसे,
चिपके हैं कुर्सी पर दीमक बन कैंसे,
क्यों न सरहद पर कुछ बूँद लहू की,
अब तुम भी दे दो जी ।
कब तक सीना छलनी यूँ सरहद पर,
करवाता रहेगा अपना फौजी। @ पँक्तियाँ सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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