Tuesday, September 4, 2012

सांसों का आशियाना


निकले कदम कितने ही आगे,
हाथ कुदरत ने आज भी थामा है !
ये जीवन तब तक चलता है अपना,
जब तक सांसों का इस पर आशियाना है !!.....रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 


3 comments:

मन्टू कुमार said...

बहुत खूब....|

Prabodh Kumar Govil said...

kuchh hi shabd hain, par padhne ki badi ichchha paida karte hain.

शूरवीर रावत said...

कम शब्दों में अधिक अभिव्यक्त करती सुन्दर रचना. आभार !

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।