Saturday, September 1, 2012

सांसों को को देखता ही नहीं

दिल ले गया था कोई कभी 
अब तो जिस्म ही बेजान है !
सांसों को कोई देखता ही नहीं, 
पत्थर भी कहने को यहाँ भगवान  है !! .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

7 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...
बहुत खूब कहा....

अनु

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर !

रिमाइंडर भेजिये कहाँ ले गया बताये
नहीं बताता है तो आर टी आई लगायें !

मेरा मन पंछी सा said...

वाह\\\\
बहुत-बहुत सुन्दर
:-)

Shikha Kaushik said...

BAHUT SUNDAR .BADHAI

Yashwant R. B. Mathur said...


आज 03/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

alka mishra said...

अच्छी पंक्तियाँ चुन कर लाये हैं आप

Unknown said...

nice one

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।