Tuesday, February 26, 2013

मैं तो पानी हूँ


नमन करूँ मैं इस धरती माँ को,

जिसने मुझको आधार दिया,

पल पल मर कर जीने का

सपना ये साकार किया !

हिम शिखर के चरणों से मैं,

दुःख मिटाने निकला था,

किसी ने रोका मुझे भंवर में,

कोई प्यासा दूर खड़ा था !

कभी आँखों से टपका मैं,

कभी बादल बनकर बरसा हूँ,

कभी सिमट कर इस माटी में,

नदी नालों में बहता हूँ !

कब कहाँ किसके काम आऊँ,

मैं कहाँ इतना ज्ञानी हूँ,

सब के तन मिटे इस माटी में,

मैं तो फिर भी पानी हूँ ! – रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’


5 comments:

Kailash Sharma said...

अंतस को छू जाती बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

Unknown said...

सुंदर अभिव्यक्ति .......
आप भी पधारो स्वागत है ..
http://pankajkrsah.blogspot.com

ज्योति-कलश said...

bahut sundar bhaavpoorn panktiyaan aapki ...

saadar
jyotsna sharma

Anonymous said...

क्या कहू राजेन्द्र जी आखों से पानी निकाल दिया आप ने ----किसी ने रोका मुझे भंवर में --क्या बात है

Unknown said...

Wah!!!!!!!!!

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।