Monday, June 4, 2012

मेरा खिलौना

मेरा खिलौना 
मैं शव्दों के खिलौना से खेलता हूँ 
मैं शव्दों में बिखरे अक्षरों को धकेलता हूँ 
मैं नहीं देखता हूँ तूफानी नदियों को 
मैं शव्दों की पंक्तियों में तैरता हूँ !
कलम खुद ही पकती है मेरा हाथ 
कागज खुद ही उड़ता मेरे साथ 
मैं सयाही को घोल भी नहीं पाया 
कि शव्द उछल कर कूद पड़ते हैं !
इनके अचानक आने से 
मन में तूफान उमड़ पड़ता है 
छोड़ कर अपने सरे काम 
मन चंचल चल पड़ता है
मन चंचल चल पड़ता है 
मन चंचल चल पड़ता है ............राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'










मालू के पत्तलों एवं डोने (Maalu Done Pattal)

यदि आप गूगल, फेसबुक या सोशियल मीडिया के अन्य प्लेटफॉमों का उचित उपयोग करते हैं तो क्या नही मिल सकता है। बस मन में सदैव कुछ नया सीखने की चाह ...