Saturday, March 2, 2013

गजल


निगाहें उन तश्वीरों को रंग भरती हैं

जो चेहरे पे अपनी लकीरें रखती है

हृदय की धड़कन भी कम नहीं होती

एहसास के दीप ये जलाये रखतीं हैं 

कब के फेंक देते उस ‘नकाब’ को हम

पर ‘मौसम’ के लिए ये साथ रखते है

कहीं भिगोये न ये बूंदें ‘तन’ फरियादी

यूँ ही नहीं यादों की रेत हम रखते हैं - गजल राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

नोट : ये मेरी प्रथम गजल है या यूँ समझिये गजल की सीड़ियों पर निगाह उतरी है गजल की मुझे जानकारी नहीं है फिर भी मैं अपने हृदय की आवाज को अनसुना नहीं कर पाया आशा है सभी मित्रों के स्नेह और आशीर्वाद के रूप में मुझे गजल की बारीकियां सिखने को मिलेंगी, त्रुटी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | 



  

2 comments:

रवीन्द्र प्रभात said...

पहली गजल और इतनी सधी हुयी.....शेर में बज़्नो-बहर का ख्याल रखें गज़लें आपका ख्याल रखती रहेगी । शुभकामनायें ।

अज़ीज़ जौनपुरी said...

sundar bhav avm sarahniy prayas

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।