Monday, September 19, 2011

हिंदी की पुकार

जन जन से मिल कर 
शहर से निकल कर 
आती है सहमी सी आवाज 
की तुम मुझे बचालो! 
मुझे बचालो ! 
मुझे बचालो !
हर एक पहाड़ से टकराकर 
हर एक नदी से नाह कर 
धरती को चीर कर 
हवा सी घसीट कर 
आती है सहमी सी आवाज 
की तुम मुझे बचालो! 
मुझे बचालो ! 
मुझे बचालो !
माँ की ममता से 
किसान की क्षमता से 
व्यवसायी के व्यवसाय से 
युवा के उत्साह से 
थक हार कर 
आती है सहमी सी आवाज 
की तुम मुझे बचालो! 
मुझे बचालो ! 
मुझे बचालो !
सूर्य की किरण से 
धरती के रज-कण से 
नेताओं के आवाहन से 
इन्सान के संज्ञान से 
आती है सहमी सी आवाज 
की तुम मुझे बचालो! 
मुझे बचालो ! 
मुझे बचालो !
विज्ञानं के चमत्कार से 
ज्योतिष के उपकार से 
दानी के दान से 
विद्वान के ज्ञान से 
थक हार कर 
आती है सहमी सी आवाज 
की तुम मुझे बचालो! 
मुझे बचालो ! 
मुझे बचालो !........राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Saturday, September 17, 2011

पौधे को उगने दो


यह नन्हा कोमल पौधा है 
इस पौधे को उगने दो
अपनी भेड़ें रोक भी लो 
ओं राजनीति के चरवाहों 
कितने उर्वर विखरे हैं 
इस पौधे को उगाने में 
भूख प्यास कि दी कुर्वानी 
इसे राह दिखने में 
तब जा के एक प्यारा सा 
ये आंचल लहराया 
बुझे हुए सब चेहरों को
एक मुस्कराहट दे पाया 
यह नन्हा कोमल पौधा है 
इस पौधे को उगने दो
चुनो न इसकी पत्तियां 
सद-भावना के तार लगाओ 
मिल कर दो सहारा इसको 
आपस में सब प्यार जगाओ ............राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

नोट: यह रचना मैंने उत्तराखंड राज्य को देखते हुए लिखी थी 

Tuesday, August 2, 2011

ये आँखे तो दर्पण हैं

ये आँखे तो दर्पण हैं 
अधर पर जो न आ पाये
इन पर हर रोज़ उभरता है 
मन का मौसम कैंसा भी हो 
इन पर सब कुछ दिखता है 
ये आँखे तो .........ये आँखे तो ....
ये आँखे तो दर्पण हैं !
खुशियाँ भी फुहवारे बन कर 
गम आते हैं लेकर रिमझिम 
अक्स इन पर ऐंसे उभरते 
जैंसे मानो हो प्रतिबिंम्ब 
ये आँखे तो ......... ये आँखे तो ........
ये आँखे तो दर्पण हैं !.......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Wednesday, July 27, 2011

फरियाद करूँ तो किससे


ये घटा तू बता मैं फरियाद करूँ तो किस से 
अपनों ने जब यूँ दर-दर भटकाया मुझको ,
तब फरियाद करूँ तो किस से !
मिटटी का बना खिलौना है,
मेरा हर सुख-दुःख तो यूँ ,
सब तो मुझको छोड़ चले,
आपना किसको मैं कह दूँ ,
ये घटा तू बता!  
किससे अब फरियाद करूँ तो किस से 
ये घटा तू बता मैं फरियाद करूँ तो किस से .........रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Thursday, June 30, 2011

कही मैं दीपक न बन जाऊं

मैं तो अकेले जलता हूँ,
सारी महफ़िल देख रही है,
मैं खुद से ही डरता हूँ,
कहीं मैं दीपक न बन जाऊं !
मेरे जलन की रोशनी,
उनको खार सी चुभती है,
जख्म मुझे मिले मरघट में मैं हूँ,
भला उनकी आँख क्यों दुखती है,
मैं अपनी यादो में आपने,
अरमा डुबो कर जलाता हूँ,
भला कोई हृदय क्यों आकर,
मेरे मरघट पे मंडराता है !
मुझे डर है लोग इल्जाम देंगे,
कहीं मैं दीपक न बन जाऊं !........... रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'












Saturday, June 11, 2011

हम इन्सान हैं


हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
पड़े पत्थर राह में कौम के, उनको भी हटायें,
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें !
जमी के टुकड़े -टुकड़े करके,
हमने इसको बांटा है
छाया के लिए पेड़ लगाया,
उसमे उगता काँटा है !
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
अब तक बने हैं कितने खंडर 
सभी को ये दिखायेंगे !
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
कितनी सांसों ने कौम को विस्तार बनाया,
विज्ञानं ने कब इन्सान को जीना सिखाया,
कितनी सरहदों ने लहू से प्यास बुझाई 
इन्सान को इन्सान कब देता है दिखाई
हम इन्सान हैं, इन्सान को इन्सान बनायें,
पड़े पत्थर राह में कौम के, उनको भी हटायें, रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Friday, June 10, 2011

मेरी आरजू


तेरे रुपहले कुंजों की हंसी,
मैं एक बार देखना चाहता हूँ,
कर लेना नफरत जी भरकर,
मैं  राग  तुम्हारे  ही  गाता  हूँ !
सोचता हूँ तुम्हारी पलकों तले,
आंधियाँ   कैंसी   छा   पायी,
सावन कितना ही हो अँधियारा,
हरियाली उसने ही दिखलायी !
न नज़रों को जकडो यूँ परदे में,
दमन से यादें क्या मिटा पाओगी,
मांगे  सदी  तुम  से   कुर्वानी,
नाम  मेरा  क्या  दे   पाओगी!
है  मंजूर   तुम्हें  ये   सब  तो,
ध्यान कुछ इतना भी रख लेना,
जले चिता जब मेरे अरमानो की,
पलकों से आंसू न गिराने देना !...........रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'





तेरा मुस्कराना

मेरी नज़र यूँ उठती गिरती है,

हर  घटा  से   ये   पूछती   है,

हम   से   क्यों  दूर     हुआ ,

यूँ       तेरा       मुस्कराना !

क्या  भूल  हुई  है  हम  से,

क्यों  अधर  तेरे  यूँ  रूठ  गये,

निगाहों   के  हर  तीर  पे  मेरे,

क्यों  बेरहमी का ढाल लिए हो !

माना की  हम  से  थी  शिकायत  तुम्हें,

उमीदों  को  आपनी क्यों बेसहारा किये हो,

जख्म    मिले   हैं   जो   वफ़ा   के   हमें,

आंसू   उनके   खुद   भी   रो   रहे    हो !

न  दुनिया  हमने  देखी   थी कभी,

दर्द  से इसके हम भी अनजान थे,

कब तक हँसे रोयें महफिल में,

कुछ दिन के ही तो मेहमान हैं ! ..रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Wednesday, June 8, 2011

तुम दूर हुए तो याद पास आयी


तुम दूर हुए तो याद पास आयी,
क्या यही तोफा है दोस्ती का ?
सोचा न था तक़दीर एक दिन,
चल कर ये दिन भी दिखलाएगी,
हम तुम दूर होंगे याद पास आएगी !
तुम दूर हुए तो याद पास आयी,
क्या यही तोफा है दोस्ती का ?
वो तूफान हमने न कभी देखा था,
अरमानो की कश्ती को जो खेता है,
दुनिया का सायद यही तकाजा है,
यादें मिल जाती हैं यार विछुड़ जाता है,
तुम दूर हुए तो याद पास आयी,
क्या यही तोफा है दोस्ती का ?
तुम्हारे  यूँ   चले   जाने   से,
यादें   जो   आ   रही    हैं ,
दुवायें होंगी तुम्हारी ये मगर,
हमें  तो  ये  जला  रही  हैं !.....रचना --राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मैंने कभी सोचा ही न था

मैंने कभी सोचा ही न था 
मुड  कर  के  देखूं   किसे,
हर तरफ मुस्कराती सुबह है,
कदम पड़ते हैं जिस गली पे,
मुझ को लगाती क्यों अजनवी है!
सब कहते है सावन जिसे,
मैं पतझड़ नाम देता हूँ,
भूल जाते एक बसंत पर,
उन भैरों को पैगाम देता हूँ !
जिस राह पर चल कर आया हूँ,
राहगीर  उसी के    ठुकराते हैं,
जिसको मन से पूजा मैंने,
वे आकर दीप बुझाते हैं !.....रचना-.राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

लेख

लिख रहा हूँ कुछ मैं,
ध्यान फिर भी हैं,
हर लेख यूँ ही,
चर्चित नहीं हुआ करता
महफिल में हजारों
मिलते हैं हम से
यूँ तो हर कोई आपना
परिचित नहीं हुआ करता .........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ

मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझे बिखर ना जाना,
दुनिया के लिए धन दौलत सब कुछ,
मैं एक तुम्हारा हूँ परवाना !
मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझको बिखर ना जाना,
साडी खुशियाँ ठुकरा दी हैं,
आपनो का भी गैर हुआ,
सब के तीर सहे हृदय ने,
तब जाके ये शहर ! .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, June 7, 2011

मेरा साथी


मेरा साथी वो सपना हैं,
तुम्हे लेकर जो आता है,
देख अधर की हंसी तुम्हारी,
मन भैरा सा गता है !
तुमने मुड़कर देखा ही कब,
फिर भी तुमको मित बनाऊं .
सपना भी ये कुछ पल का है,
इसको ही मैं गीत सुनाऊं !
जाने कौन पुकार सुने,
छोटे से इस वेबस मन की,
यहाँ विकता हैं ' दिल ' पैंसों में,
कौन सुने फिर मुझ निर्धन की !.....रचना ...राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'   

Sunday, June 5, 2011

मेरे प्यारे अक्षर


मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझे बिखर ना जाना,
दुनिया के लिए धन दौलत सब कुछ,
मैं एक तुम्हारा हूँ परवाना !
मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझको बिखर ना जाना,
सारी खुशियाँ ठुकरा दी हैं,
आपनो का भी गैर हुआ,
सब के तीर सहे हृदय ने,
तब जाके ये शहर!  .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

यादों का सफर


घन छाये यादों के मेरे ऊपर,
अश्क आज पानी बरसते हैं,
ढल चुकी थी निशा हृदय में,
लौट कर फिर क्यों रवि आते हैं!
कितनी मधुर अभिलाषाएं लेकर,
मधुप     यूँ        मंडराते    हैं,
कुछ पल का सहारा देकर पुष्प,
क्यों सपनों को तोड़ जातें हैं!
हैं भटकते हम मुसाफिर बन कर,
जीवन के इस वीराने सफर में,
यादें रहती हैं एक नज़ारा बन कर 
जीवन के टूटे हुए इस दर्पण में !........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मेरी पाठशाला


नन्हा बच्चा बन कर तेरी,
गोद में मैं जब आया था,
आपने जैसे देख अनोकों,
मैं कितना हर्षाया था,
जल विहीन घट सा था मैं,
तुमने मुझको भर डाला,
एक अंधियारी रात्रि को
तुमने सबेरा दे डाला,
तेरी कृपा का हूँ आभारी,
नतमस्तक तुझे सदा माँ,
आँचल तेरा सबसे प्यारा,
देख चूका हूँ सारा जहाँ ........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Tuesday, May 17, 2011

अभी अभी तो राह पकड़ी है,


मैं चलने को तैयार हुआ,
मन में कुछ उलझन सी है,
आवाज न दे कोई राह में मुझको
अभी अभी तो राह पकड़ी है!
सपने आपने कब सच होंगे,
हर मंजिल एक बसेरा है,
जीवन जिसको समझा था मैं,
वो दिन रात और सबेरा है !........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मन बिचलित क्यों होता हैं

मैं खड़ा हूँ एक चौराहे पर,


राह सभी मुझे बुला रही हैं,


सुन पुकार इन राहों की अब,


मन बिचलित क्यों होता हैं,


लेकर यादें जो आया था,
अब वे हाथ हिला रही हैं,


देखा अकेला राही मुझको,


गलियां सभी बुला रही हैं .......... रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर ' फरियादी'

Sunday, May 15, 2011

तलाश



दुंढते-दुंढते यूँ थक सा गया हूँ,

उम्र के जोर में पाक सा गया हूँ.
कहाँ-कहाँ न गुजरा उनके लिए,

जिन शब्दो को आज मैं तलाशता हूँ.
मैने अपनी वफ़ाओं  का जाल बिछाया,
पाने भर को उनके कदमो के निशा,

हर रंग मे पहले ही रंगी था मैं,
क्यो रंग दिखाते हैं मुझे ये जमी.
न जाने अब किस राह पर चलूँगा मैं,
भुला दूँ उनको या उपवास करूंगा मैं.
न दे आग कोई मुझे क्या,
‘फरियाद’ पे ही जलूँगा मैं........रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

पल भर की नजर



एक छोटी सी कहानी है तेरे यादों की

जो निशा की तरह आती है


यूँ छुप कर छाया तेरा

घटा बन कर लहराता है

मगर यादों का साया है जिंदगी

जो फूलो की तरह तडफायेगी

दे कर एक झलक हंसी की

जिंदगी  भर रुलाएगी

यूँ गुजरती जिंदगी की एक निगाह

ढलती शाम के किनारे तक पहुँची

खुशियों के लिवास से ढक लेंगे हर जख्म 

हर याद पे एक जख्म देती है जिंदगी  ....................... रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मेरा बचपन

कब छोड़ चला वो बचपन मुझको,
मुझको कुछ भी याद नहीं
क्या मांगू अब किसे पुकारूँ,
सुनता कोई फरियाद नहीं
नादानी थी ऊपर मेरे,
चाँद की मै हठ कर बैठा
रूठ गया है बचपन मुझसे,
तब से खोया सा मै रहता
रिमझिम बादल बरस पड़ते थे,
नौका कागज की मैं खेता
तितली जुगनू खेल खिलाते,
थक हार कर तब मैं सोता
कब छोड़ चला वो बचपन मुझको,
मुझको कुछ भी याद नहीं
क्या मांगू अब किसे पुकारूँ,
सुनता कोई फरियाद नहीं ............
 रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

बिखर गया मेरा प्यार

बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
कहाँ मै खोजूं उन तस्बीरों को,
बिरानी इन राहों में
बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
पुरवाई ले गयी उस आंचल को,
घटा ने पानी बरसाया
सूरज ने दी तपति मुझको,
पतझड़ पेडो ने दिखलाया
बना हैं कैसे पल में मौसम,
बिरानी इन राहों में
बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
भोरें आ कर उड़ भी गये,
फूल लगे सब मुरझाने
कहाँ मै खोजू किसे पुकारूँ,
बिरानी इन राहों में
बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
कहाँ मै खोजूं उन तस्बीरों को,
बिरानी इन राहों में
बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
चाँद लगा है मुझ पर हंसने,
तारे भी हैं देते ताने
क्या मैंने सोचा था तब,
क्या चला हूँ आज निभाने
बिखर गया सब प्यार मेरा,
बचपन का समेटा इन बाँहों में
कहाँ मै खोजूं उन तस्बीरों को,
बिरानी इन राहों में..............
 रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 



मैं जो दीप जलाये चलता हूँ

मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको
मैं जो राह बनाये चलता हूँ,
तूफानों ! मिटा न देना उसको
मैं कितना लड़ा हूँ जिंदगी से,
वहारों ! बता न देना उसको
मैं मजबूरियों से दूर हूँ,
यादों ! सता न देना उसको,
मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको
मैं दुखों में उनके लिए हँसता हूँ,
आंसुओं ! रुला न देना उसको
मैं हार रोज आहें भरता हूँ,
ख्वाबों ! जता न देना उसको
मैं वेचैनी में जब देखना चाहूँ
घटाओं ! छुपा न देना उसको
मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको-----------
 रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।