ब्लॉग में आपको अनेक विषय वस्तुओं पर जानकारियाँ मिलेंगी जैंसे Education, Technology, Business, Blogging आदि।
Tuesday, July 25, 2017
Monday, July 24, 2017
फिर उठी वही नजर तुम्हारी
जिस नजर से तुमने छोड़ा था,
घर-गाँव, खेत-खलिहान,
अपने स्वार्थ के लिए!
जिस नजर से तुमने छोड़ा था,
घर-गाँव, खेत-खलिहान,
अपने स्वार्थ के लिए!
आज फिर वही स्वार्थ
जागा है सायद तुम्हारा
क्योंकि तुम पक चुके हो
समय की आग में और
बन चुके हो फिर इंसान!
जागा है सायद तुम्हारा
क्योंकि तुम पक चुके हो
समय की आग में और
बन चुके हो फिर इंसान!
खोज रहे हो अपने धरातल को
स्वच्छ हवा पानी के घर को
कौन समझाए तुम्हें अब कैंसे
संभालोंगे इस भू तल के सौन्दर्य को।
स्वच्छ हवा पानी के घर को
कौन समझाए तुम्हें अब कैंसे
संभालोंगे इस भू तल के सौन्दर्य को।
तुम फिर चक्रव्यूह में उतर रहे हो
अर्जुन नही अभिमन्यु बन रहे हो
कर्त्तव्य नही कौशल जरूरी होता है
जीवन का क्या ये पल-पल में रोता है।
अर्जुन नही अभिमन्यु बन रहे हो
कर्त्तव्य नही कौशल जरूरी होता है
जीवन का क्या ये पल-पल में रोता है।
थक चुके हो सोच लो फिर, वक्त है
वक्त की दौड़ में वक्त ही कुचलेगा
स्वार्थ पीड़ा ने ठगा है फिर तुम्हें,
प्रकृति, पर्यावरण और पलायन को बदनाम मत कीजियेगा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी
वक्त की दौड़ में वक्त ही कुचलेगा
स्वार्थ पीड़ा ने ठगा है फिर तुम्हें,
प्रकृति, पर्यावरण और पलायन को बदनाम मत कीजियेगा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी
Monday, June 12, 2017
Wednesday, December 14, 2016
रफ्तार
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की ओर सड़कों की
और शहरों की ओर लोगों की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की ओर अपराधों की
ओर शहरों की ओर संस्कृति की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की व्यापार की,
शहरों की और बेरोजगार की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की ओर विश्वास की,
शहरों की ओर अविश्वास की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है
देखो! गाँवों की ओर विनाश की
शहरों की ओर विकास की ।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! शहरों की ओर इंसानियत की,
गाँवों की ओर हैवानियत की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। @ - पंक्तियाँ, सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
गाँव
बुढा हो चला है
क्यों लौट रहे हो
बर्षों बाद आँखों में
आँसू लिए किसको
ढूंढ रहे हो।
गाँव
बुढा हो चला है
तुम भी घुटनों पर
उठ कर गिर रहे हो,
फिर आज यूँ क्यों
लड़खड़ाते हुये
कदम वापस बढ़ा रहे हो।
गाँव
बुढा हो चला है
वो भूल चुका है तुम्हें
तुम भी भूल चुके थे
किसके लिए तुम
पत्थर रख हृदय में
यूँ वापस आ रहे हो।
गाँव
बुढा हो चला है
अशिक्षित है मगर
अपनी मातृभाषा को
पहिचानता है
तुम तो विदेशी भाषाओँ के
बादशाह बन बैठे थे
फिर क्यों लौट आये। @ - सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Friday, July 29, 2016
Wednesday, July 13, 2016
Wednesday, April 6, 2016
Wednesday, February 10, 2016
घर
मैं निकल पडा हूँ, घर की तलाश में !
जहाँ बूढी अम्मा,
एक नई पीढ़ी को,
गाथाएँ सुनती हुई मिले lमैं निकल पडा हूँ,
घर की तलाश में !
जहाँ पर गूँज रही हो किलकारियाँ,
और महकता हुआ आँगन मिले l
मैं निकल पडा हूँ,
घर की तलाश में !
जहाँ पर दीवारें गुनगुनाती हों,
मिट्टी के सौन्दर्य की कहानी,
और एहसास न हो चार दिवारी का l @ - रचना , सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Thursday, January 7, 2016
दर्द सिपनयों कु
तुमारी आँख्यों मा देखा,
आँसू च घुमणू।
गौं कु भुल्यूं बाटू दिदौं
आज यू खोजणू।
बितड़ग्याँ तुम विचारा,
शहर की हवा मा।
जिंदगी हिटणा हाँ,
डॉक्टरुई दवाय मा। - @ पंक्तियाँ सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Wednesday, January 6, 2016
फौजी
कब तक सीना छलनी यूँ सरहद पर,
करवाता रहेगा अपना फौजी।
चुप बैठें हैं घौर तपोवन में जैंसे,
चिपके हैं कुर्सी पर दीमक बन कैंसे,
क्यों न सरहद पर कुछ बूँद लहू की,
अब तुम भी दे दो जी ।
कब तक सीना छलनी यूँ सरहद पर,
करवाता रहेगा अपना फौजी। @ पँक्तियाँ सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Monday, August 3, 2015
देखदा देखदी
कन बोन्ना छाँ,
सरा उत्तराखंडी
नेता बण्यां छाँ,
बीजेपी कांग्रेसन
घोल्याली रे,
उत्तराखंड कु
भोलू मन्खी,
पल्टयियों मा
छोल्याली रे।
कख होए, कन होए,
देखा धौन् रे,
यखुली मरुड़यों मा
रौंणू च रे'।
बोन्ना जै तैं
विकास छा तुम,
उ मवासी
मिटोणु च रे।
अपणी आंख्यों तै
अब सेंण न द्यान,
समाल्यी रख्याँ
सुप्न्यौं तै,
खतेंण न द्यान ! रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
कन बोन्ना छाँ,
सरा उत्तराखंडी
नेता बण्यां छाँ,
बीजेपी कांग्रेसन
घोल्याली रे,
उत्तराखंड कु
भोलू मन्खी,
पल्टयियों मा
छोल्याली रे।
कख होए, कन होए,
देखा धौन् रे,
यखुली मरुड़यों मा
रौंणू च रे'।
बोन्ना जै तैं
विकास छा तुम,
उ मवासी
मिटोणु च रे।
अपणी आंख्यों तै
अब सेंण न द्यान,
समाल्यी रख्याँ
सुप्न्यौं तै,
खतेंण न द्यान ! रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Friday, June 26, 2015
'यूँ तो हम पत्थर हैँ'
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे
और रेतीली राह के स्तंभ हैँ
चेतन जगत की बात हो जब
पल-पल बदलते मौसम हैँ ।
और रेतीली राह के स्तंभ हैँ
चेतन जगत की बात हो जब
पल-पल बदलते मौसम हैँ ।
किसी की ठोकर बन गये
बन गए किसी की पतवार
किसी ने यूँ रौँदा राह तले
बिखर गए जलते से अंगार ।
बन गए किसी की पतवार
किसी ने यूँ रौँदा राह तले
बिखर गए जलते से अंगार ।
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे
डुबते हुए अश्को से निकले
सीख ले कोई हम से चलना
पल-पल यूँ आँख न मिचले ।
डुबते हुए अश्को से निकले
सीख ले कोई हम से चलना
पल-पल यूँ आँख न मिचले ।
किसी ने लहरों मे भी छोड़ा
किसी ने मिट्टी मे दफनाया है
जिनकी नजरों ने चुबोए थे काँटे
उनकी आँखों ने ही अपनाया है ।
किसी ने मिट्टी मे दफनाया है
जिनकी नजरों ने चुबोए थे काँटे
उनकी आँखों ने ही अपनाया है ।
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे । - गीत @ सर्वाधिकार सुरक्षित एवं पूर्व प्रकाशित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Friday, February 6, 2015
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
जाने कितनी ठोकर आएँ
पल पल यूँ तुम गिर भी पडोगे
रूकना नही है तुमको फिर भी
यूँ ही एक दिन शिखर चढोगे ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
पल पल यूँ तुम गिर भी पडोगे
रूकना नही है तुमको फिर भी
यूँ ही एक दिन शिखर चढोगे ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
कभी बिखरेगा विश्वास तुम्हारा
मिलता रहेगा एहसास दूवारा
तुम गति को अपनी रोक न देना
बहती धारा मे झोंक न देना ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
मिलता रहेगा एहसास दूवारा
तुम गति को अपनी रोक न देना
बहती धारा मे झोंक न देना ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
संकट तुमको मिलेगा जो
उस संकट के लिए तुम खुद संकट हो
इस धरती पर जीता वही है
इसान्यित जिस पर प्रकट हो ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ । रचना @ सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
उस संकट के लिए तुम खुद संकट हो
इस धरती पर जीता वही है
इसान्यित जिस पर प्रकट हो ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ । रचना @ सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
देश का मुख्या उतर सड़क पर
क्यों इतना भय खाता है
ताकत कदमों मे है उसकी
तभी सरकार हिलाता है ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
क्यों इतना भय खाता है
ताकत कदमों मे है उसकी
तभी सरकार हिलाता है ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
कितनो ने छिनी रोटी हमारी
कितनो ने जन धन लुटे हैँ
बैठे हैँ जो संसद मे
उनके कितने मुखोटे है
आन पड़ी है अब सामत उनकी
एक एक कर सब घायल हैँ
विकासवादी भी भूल विकास को
नाच रहे बिन पायल हैँ ।
कितनो ने जन धन लुटे हैँ
बैठे हैँ जो संसद मे
उनके कितने मुखोटे है
आन पड़ी है अब सामत उनकी
एक एक कर सब घायल हैँ
विकासवादी भी भूल विकास को
नाच रहे बिन पायल हैँ ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
पुलिस प्रशासन पग पग बाधा
भारत भूमि की मर्यादा है
स्वराज का नारा देने वाला
ये स्वराज तेरा कुछ ज्यादा है ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है । @ रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
भारत भूमि की मर्यादा है
स्वराज का नारा देने वाला
ये स्वराज तेरा कुछ ज्यादा है ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है । @ रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Wednesday, February 4, 2015
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ
झूठा है केजरिवाल फिर क्यों
केजरिवाल से इतना घबराते हैँ
तन क्षीण हुए इन सब के अब
खाली संगठित का ढोंग रचाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ ।
देख पग कोमल केजरी के
हर रोज काँटे बिछाते हैँ
खरोच खुद पर जब आती है
जन सेवक बन आँसू बहाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ ।
खुद की ताकत को अपनी
हर रोज आँधी बताते हैँ
पतंगे बन के न जल जाएँ
भय इतना केजरी से खाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ । @ रचना -सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ
झूठा है केजरिवाल फिर क्यों
केजरिवाल से इतना घबराते हैँ
तन क्षीण हुए इन सब के अब
खाली संगठित का ढोंग रचाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ ।
देख पग कोमल केजरी के
हर रोज काँटे बिछाते हैँ
खरोच खुद पर जब आती है
जन सेवक बन आँसू बहाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ ।
खुद की ताकत को अपनी
हर रोज आँधी बताते हैँ
पतंगे बन के न जल जाएँ
भय इतना केजरी से खाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ । @ रचना -सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Tuesday, February 3, 2015
मन का पंछी तैँ
उड्ण द्या ज्याण द्या
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा
मंन का पंछी तैँ
खाली ग्दरियोन्
भ्रमान्दू पोथ्लू सी
ज्याण द्या देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा
मंन का पंछी तैँ
मन का पंछी तैँ
उड्ण द्या ज्याण द्या
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा
मंन का पंछी तैँ
बान्धण कैन च
कैमु इथ्गा टैम च
मंन का पंछी तै
मन का पंछी तैँ
उड्ण द्या ज्याण द्या
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा
मंन का पंछी तै । @ गीत - सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
उड्ण द्या ज्याण द्या
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा
मंन का पंछी तैँ
खाली ग्दरियोन्
भ्रमान्दू पोथ्लू सी
ज्याण द्या देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा
मंन का पंछी तैँ
मन का पंछी तैँ
उड्ण द्या ज्याण द्या
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा
मंन का पंछी तैँ
बान्धण कैन च
कैमु इथ्गा टैम च
मंन का पंछी तै
मन का पंछी तैँ
उड्ण द्या ज्याण द्या
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा
मंन का पंछी तै । @ गीत - सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Tuesday, December 30, 2014
Tuesday, December 16, 2014
Sunday, November 30, 2014
Wednesday, November 26, 2014
Friday, November 21, 2014
Friday, October 10, 2014
बिपदा मा च देव भूमी
बिपदा मा च देव भूमी
हर क्वी डरयूँ च
बदरी केदार भूमियाळ अपणु
देखा कन छुप्पयूँ च ।
नन्दा राज राजेश्वरी
कख नरसिंग लुक्यूँ च
धुर्पाळ्योन् कू देब्ता आज
खन्द्वार दब्यूँ च ।
बिपदा मा च देव भूमी
हर क्वी डरयूँ च
बदरी केदार भूमियाळ अपणु
देखा कन छुप्पयूँ च । @ गीत - सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Monday, October 6, 2014
Wednesday, October 1, 2014
''बढो आगे बढो''
बढो आगे बढो
रूको मत चलते चलो
पहिचानो उस सामर्थ्य को
जो हृदय और मस्तिष्क पर
चहलकदमी कर रही है ।
उतार दो उसे पथ पर
चढ़ने मत दो उसे रथ पर
स्वप्न संसार मे दौड़ने से
बोलो भला क्या मिलेगा । रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी
Sunday, September 28, 2014
कोई भीख लेता है कोई भीख मांगता है,
है भिखारी कौन ये कोई नहीं जनता,
कोई महलों से फैलाता है हाथ अपना,
बटोरते हैं कोई चौराह से सपना
फर्क बस रंग का है दोस्तों
कोई काले कलूटे फटे बस्त्र समेटे
कोई लहराता गेरुवा और खाकी भेष में
देखो सूरमाओं का छुपा चेहरा मेरे देश में
कोई भीख लेता है कोई भीख मांगता है,
है भिखारी कौन ये कोई नहीं जनता l -रचना @ राजेंद्र सिंह कंवर 'फरियादी'
है भिखारी कौन ये कोई नहीं जनता,
कोई महलों से फैलाता है हाथ अपना,
बटोरते हैं कोई चौराह से सपना
फर्क बस रंग का है दोस्तों
कोई काले कलूटे फटे बस्त्र समेटे
कोई लहराता गेरुवा और खाकी भेष में
देखो सूरमाओं का छुपा चेहरा मेरे देश में
कोई भीख लेता है कोई भीख मांगता है,
है भिखारी कौन ये कोई नहीं जनता l -रचना @ राजेंद्र सिंह कंवर 'फरियादी'
Subscribe to:
Posts (Atom)
मशरूम च्युं
मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।
-
मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।
-
तिमला (Timla) आम (Aam) सेब (Seb) Apple आरु (आडू) Aadu शहतूत (Shahtut) मोलू (Mili...
-
आखिर तुम कब खोलोगे ? खिड़कियाँ! अपने मन मस्तिष्क की। कानून, न्याय और अधिकार सब पर आधिपत्य है तुम्हारा! अपनी उलझनों पर तुम चटकनियाँ चढ़ा ...