Wednesday, February 4, 2015

राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित 
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ 
झूठा है केजरिवाल फिर क्यों 
केजरिवाल से इतना घबराते हैँ 
तन क्षीण हुए इन सब के अब 
खाली संगठित का ढोंग रचाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या 
चाहाते हैँ ।
देख पग कोमल केजरी के
हर रोज काँटे बिछाते हैँ
खरोच खुद पर जब आती है
जन सेवक बन आँसू बहाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या 
चाहाते हैँ । 
खुद की ताकत को अपनी
हर रोज आँधी बताते हैँ
पतंगे बन के न जल जाएँ
भय
 इतना  केजरी से खाते हैँ 
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या 
चाहाते हैँ । @ रचना -सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

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