Sunday, May 15, 2011

मैं जो दीप जलाये चलता हूँ

मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको
मैं जो राह बनाये चलता हूँ,
तूफानों ! मिटा न देना उसको
मैं कितना लड़ा हूँ जिंदगी से,
वहारों ! बता न देना उसको
मैं मजबूरियों से दूर हूँ,
यादों ! सता न देना उसको,
मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको
मैं दुखों में उनके लिए हँसता हूँ,
आंसुओं ! रुला न देना उसको
मैं हार रोज आहें भरता हूँ,
ख्वाबों ! जता न देना उसको
मैं वेचैनी में जब देखना चाहूँ
घटाओं ! छुपा न देना उसको
मैं जो दीप जलाये चलता हूँ ,
आंधियों ! बुझा न देना उसको-----------
 रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

4 comments:

अरुणा said...

आपकी सभी रचना बहुत अच्छी हैं..........

Raghu said...

कुछ भी कह पाना मेरे लिए कठिन है कि किस पंक्ति की तारीफ करूँ मैं . हर एक पंक्ति एक से बढ़कर एक है इधर तो ...
बहुत खूब राजेंद्र भाई

VIJAY JAYARA said...

सुन्दर भाव राजेंद्र जी

Jyoti khare said...

वाह बहुत सुंदर रचना

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।