Saturday, September 17, 2011

पौधे को उगने दो


यह नन्हा कोमल पौधा है 
इस पौधे को उगने दो
अपनी भेड़ें रोक भी लो 
ओं राजनीति के चरवाहों 
कितने उर्वर विखरे हैं 
इस पौधे को उगाने में 
भूख प्यास कि दी कुर्वानी 
इसे राह दिखने में 
तब जा के एक प्यारा सा 
ये आंचल लहराया 
बुझे हुए सब चेहरों को
एक मुस्कराहट दे पाया 
यह नन्हा कोमल पौधा है 
इस पौधे को उगने दो
चुनो न इसकी पत्तियां 
सद-भावना के तार लगाओ 
मिल कर दो सहारा इसको 
आपस में सब प्यार जगाओ ............राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

नोट: यह रचना मैंने उत्तराखंड राज्य को देखते हुए लिखी थी 

3 comments:

Kailash Sharma said...

सार्थक और प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति..

Unknown said...

वर्तमान सामाजिक दशा पर प्रकृति के माध्यम से सटीक प्रहार ..
साथ ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाती भाव पूर्ण प्रस्तुति ....

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' said...

कैलाश जी एवं डिमरी जी आप का बहुत बहुत आभार .........आशा है भविष्य में इसी तरह प्रेरित करते रहिंगे

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।