यह नन्हा कोमल पौधा है
इस पौधे को उगने दो
अपनी भेड़ें रोक भी लो
ओं राजनीति के चरवाहों
कितने उर्वर विखरे हैं
इस पौधे को उगाने में
भूख प्यास कि दी कुर्वानी
इसे राह दिखने में
तब जा के एक प्यारा सा
ये आंचल लहराया
बुझे हुए सब चेहरों को
एक मुस्कराहट दे पाया
यह नन्हा कोमल पौधा है
इस पौधे को उगने दो
चुनो न इसकी पत्तियां
सद-भावना के तार लगाओ
मिल कर दो सहारा इसको
आपस में सब प्यार जगाओ ............राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
नोट: यह रचना मैंने उत्तराखंड राज्य को देखते हुए लिखी थी
3 comments:
सार्थक और प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति..
वर्तमान सामाजिक दशा पर प्रकृति के माध्यम से सटीक प्रहार ..
साथ ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाती भाव पूर्ण प्रस्तुति ....
कैलाश जी एवं डिमरी जी आप का बहुत बहुत आभार .........आशा है भविष्य में इसी तरह प्रेरित करते रहिंगे
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