मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझे बिखर ना जाना,
दुनिया के लिए धन दौलत सब कुछ,
मैं एक तुम्हारा हूँ परवाना !
मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझको बिखर ना जाना,
सारी खुशियाँ ठुकरा दी हैं,
आपनो का भी गैर हुआ,
सब के तीर सहे हृदय ने,
तब जाके ये शहर! .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
No comments:
Post a Comment