मैंने कभी सोचा ही न था
मुड कर के देखूं किसे,
हर तरफ मुस्कराती सुबह है,
कदम पड़ते हैं जिस गली पे,
मुझ को लगाती क्यों अजनवी है!
सब कहते है सावन जिसे,
मैं पतझड़ नाम देता हूँ,
भूल जाते एक बसंत पर,
उन भैरों को पैगाम देता हूँ !
जिस राह पर चल कर आया हूँ,
राहगीर उसी के ठुकराते हैं,
जिसको मन से पूजा मैंने,
वे आकर दीप बुझाते हैं !.....रचना-.राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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