Wednesday, July 18, 2018

नींबू को स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक माना जाता है। विशेषकर पेट से संबंधित समस्याओं के लिए नींबू का प्रयोग अनेक तरीकों से किया जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं नींबू के ऐसे ही कुछ घरेलू प्रयोग जिनसे आप कई  छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याओं से निजात पा सकते हैं।


- पेट साफ नहीं हो रहा हो या पेचिश हो, तो प्याज के रस में कागजी नींबू का रस मिलाएं। इसमें थोड़ा-सा पानी डालकर पीएं, लाभ होगा।

- स्कर्वी रोग में नींबू श्रेष्ठ दवा का काम करता है। एक भाग नींबू का रस और आठ भाग पानी मिलाकर रोजाना दिन में एक बार लें।

- नींबू के रस में थोड़ी शकर मिलाएं। इसे गर्म कर सिरपनुमा बना लें। इसमें थोड़ा पानी मिलाकर पिएँ। पित्त के लिए यह अचूक औषधि है।

 आधे नींबू का रस और दो चम्मच शहद मिलाकर चाटने से तेज खांसी, श्वास व जुकाम में लाभ होता है।

- नींबू ज्ञान तंतुओं की उत्तेजना को शांत करता है। इससे हृदय की अधिक धड़कन सामान्य हो जाती है। उच्च रक्तचाप के रोगियों की रक्तवाहिनियों को यह शक्ति देता है।

-  एक नींबू के रस में तीन चम्मच शकर, दो चम्मच पानी मिलाकर, घोलकर बालों की जड़ों में लगाकर एक घंटे बाद अच्छे से सिर धोने से रूसी दूर हो जाती है व बाल गिरना बंद हो जाते हैं।

- एक गिलास पानी में एक नींबू निचोड़कर सेंधा नमक मिलाकर सुबह-शाम दो बार नित्य एक महीना पीने से पथरी पिघलकर निकल जाती है।

- चेहरे की सुंदरता बढ़ाने के लिए नींबू की कुछ बूंदें दूध में डालें। रूई भिगोकर चेहरा चमकाएं।

- नींबू को नमक तथा काली मिर्च के साथ चाटें। यह भोजन से पूर्व चाटना है। तब अधिक भूख लगा करेगी।

- यदि दस्त लगे हों तो दूध में नींबू का रस 8-10 बूंद डालकर मिलाकर रोगी को पिलाएं। यह बहुत लाभकारी रहता है। दिन में चार बार लेवें। अधिक फायदा होगा। एक गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़ें। रोगी इसे पी ले। दिन में चार बार ऐसी खुराक लें।

- सुबह-शाम एक गिलास पानी में एक नींबू निचोड़कर पीने से मोटापा दूर होता है।

-एक गिलास पानी में एक नींबू निचोड़कर पीते रहने से नेत्र ज्योति ठीक रहती है।


Friday, July 13, 2018

गौं घौर गुठ्यारों मा आज भी
डाळयोँ कु छैल पसरयूँ च!
सरकी च आफु आपरी खुट्टीयोंन्
यू मंख्यों कु दोष च मंखि हरच्युं च!

पोथ्लियों कु चुंच्याट, नुन्यारों कु घुंघ्याट
गाड-गदरियों कु सिंस्याट
आज भी जुकुडी बुथ्योंणु च!
शहरूँन् लल्चाई मंखि कु ज्यू
देखा धौं ज्यू आज खुदेंणु च! @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Thursday, April 19, 2018

अपना ब्लॉग कैसे बनाएं तथा कैसे संजोएं How to make one's blog and maintain it



अपना ब्लॉग कैसे बनाएं? [How to make your own blog?] यह प्रश्न www पर पूछा जाता रहा है और हम भी यदा-कदा  इस प्रश्न से दो-चार हो जाते हैं IndianTopBlogs पर या फिर ईमेल पर. 

सच पूछिये तो दो प्रश्न  साथ  चलते हैं:  ब्लॉग कैसे बनाएं (How do I create a blog) तथा ब्लॉग को कैसे संजोएं (Ho do I maintain my blog) क्योंकि एक ब्लॉग बना देना तो बहुत मुश्किल नहीं है और हम नीचे बता रहे हैं कि कैसे बिना किसी खर्च के और बिना टेक्नोलॉजी के ज्ञान के करीब 30 मिनट में ही एक ठीक-ठाक ब्लॉग बनाया जा  सकता  है. बात रही ब्लॉग को खूबसूरत बनाने की, उसे ठीक से आगे बढ़ाने की, ब्लॉगिंग से धन कमाने की - इन सब  के लिए समय देना होता है, अनुशासन में रहकर काम करना होता है और बिना धैर्य खोए आगे बढ़ते रहना होता है. दोनों विषयों पर हम आपको अपनी सहभागी वेबसाइट IndianTopBlogs, के लिंक्स पर ले जाएंगे, लेकिन पहले देख लें ब्लॉग बनाने का सरल और कामगार नुस्खा.

नए ब्लॉगर साथियों के लिए तो यह उपयोगी होगा ही, पुराने साथी भी इसका लाभ अपने ब्लॉग को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कर सकते हैं:


आज हमारे दिन की शुरवात ही चाय से होती है। क्या आपको स्पेशल चाय पसंद है? स्पेशल चाय के लिए चाय मसाला भी तो स्पेशल ही चाहिए न! चाय के लिए कहा जाता है कि "सुस्ती हटावें, स्फुर्ति दिलावे, सकल दर्द मिट जाय, जगत में चाय बड़ी बलवान!” तो आइए, आज हम बनाते है, चाय मसाला।

सामग्री-
• सौंठ-                     125  ग्राम
• काली मिर्च-             50  ग्राम
• लौंग-                      25  ग्राम
• इलायची-                25  ग्राम
• जायपत्री-                10  ग्राम
• कलमी (दालचीनी)- 25  ग्राम

विधि- How to make tea masala
• सभी मसालों को अच्छे से साफ़ कर लीजिए।
• दालचीनी को छोड़ कर बाकी मसाले कढ़ाई में डाल कर थोड़ी देर भून लीजिए। जब मसाले थोड़े से सीक जाए तब दालचीनी डाल कर दो मिनट और भून लीजिए।
• मसाले को ठंड़ा होने पर मिक्सर में बारिक पीस लीजिए।
 अब किसी एयर टाइट डब्बे में भर कर रख लीजिए। जब भी आपको चाय बनानी हो, स्वादानुसार स्पेशल चाय मसाला डाल कर चाय बनाइए। इस चाय मसाले से चाय एकदम स्वादिष्ट लगती है। 
• यह मसाला कई महिनों तक खराब नहीं होता।
टिप-
मसालों को सेंक कर पीसने से खुशबू अच्छी आती हैं।


Friday, March 30, 2018

युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच द्वारा प्रदान की सम्मान पत्र। 


Friday, February 2, 2018

गीली मिट्टी
कभी आंखों में
नव अंकुर सी
रेखांकित कर देती 
पल-पल को
गीली मिट्टी!
सपने पलने लगते
अपने चलने लगते
एहसास दिला जाती
क्षण भर में
गीली मिट्टी!
लेना चाहता है स्वरूप
तेरे आगोश में छुप कर
टहलता हुआ जल
बदल देती है रूप
गीली मिट्टी!@ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Wednesday, November 15, 2017

आँखि खोल द्या
बक्त ऐगी देख्णो
आँखि खोल द्या
बक्त ऐगी बोनो 
भट्याकी बोल द्या
अदलि बदलि देख्ला कब तैं
अब त बटोल द्या!
बक्त ऐगी देख्णो
आँखि खोल द्या
बिस्त्रों मा न पाला यूँ तैं
अब त ख्खोड द्या
बक्त ऐगी बोनो
भट्याकी बोल द्या!
बक्त ऐगी देख्णो
आँखि खोल द्या
उगरा ग्ळयों अपरी खुटयों न
धोरा यूँ तै न औण द्या
बक्त ऐगी बोनो
भट्याकी बोल द्या!
बक्त ऐगी देख्णो
आँखि खोल द्या
कब तलक टक लागैकि
देख्ला ऊँ बाटियों
बक्त ऐगी बोनो
भट्याकी बोल द्या! @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, November 14, 2017

आँख्यों मा छळकदू आँसू 
पराण निरास्यूँ रै ग्याई
रट लगाईं रै उत्तराखंड की 
त्वी बतौ बणी उत्तराखंड तिन क्या पाई। 
कुठारी भौर्यालि उँ लोगून् 
चमकदा दरवार देख्याला
तुम रोंदाँ रयाँ सदानी इनि
कै दिन नींद मा तुम भी सेजाला।
भोळ औण नि फिर यू दिन
सुखी जाला आँसू रोंण नि तिन
गुठयारों मा बांदर रैला
धुरपालियों मा कंडाळी पैला।
हर्युं भर्युं गौं ह्वैजालू
फिर निवाति कोण्यों पर कन कै सेल्या
सुपिन्यों कु उत्तराखंड इनी पैला।
@ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Thursday, November 2, 2017

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Wednesday, October 4, 2017

~~~ ढुंगा ~~~
ढुंगा उठ्यां भी छन 
ढुंगा छुप्याँ भी छन 
ढुंगा फर्कणा भी छन 
ढुंगा सर्कणा भी छन
क्या बोन यूँ ढुंगों कु
ढुंगा ढुंगा भी नि छन!

देखा टिडागी पौंडीं हफार 
निर्भाग्यों कु बण्युँ व्यापार
भौ कुई देंदु नि यूँ तैं कभी 
छौंदी कुड्यों बण्याँ खंद्वार!

ढुंगा उठ्यां भी छन 
ढुंगा छुप्याँ भी छन ......!

टकराणा छिन आफुमा 
कच्चाकी पौंडीं देहगाथ 
मुछालौं सी सुलग्याँ छन 
कैंमा लगौंण छुयीं बाथ!

ढुंगा उठ्यां भी छन 
ढुंगा छुप्याँ भी छन .....!

समझणा भी छन 
ढुंगा ढुंगा ही छन
मुखुड़ि घसिं माटन्
माटासी यी खुश छन! 
@- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Wednesday, August 23, 2017


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Sunday, August 20, 2017


गुणा करने की सरल विधि ,TRICKS MULTIPLICATION
एक विषय ने करीब-करीब हर किसी को परेशान किया है, जिसकी क्लास शुरू होने से पहले ही पसीने आने लगते थे. जी हां, मुझे पता है कि आपने उस विषय को पहचान लिया है. गणित था ही ऐसा कई बार होता था इस विषय के रात में डरावने सपने भी आते थे लेकिन अब गणित के कुछ पहलुओं की गहराईयाँ जानने की कोशिश कर रहा हूँ। गणित सबसे सरल और जीवन के रोजमर्रा के उपयोग में आने वाली प्रमुख विषय भी है इससे हम नकार नहीं सकते, परन्तु हम लोग गणित से अक्सर दूर भागते हैं इस और ज्यादा ध्यान नहीं देते यदि हम गणित के जादू को ठीक से समझने की कोशिश करेंगे तो यह सबसे आसान विषय बन कर उभर सकता है इन ट्रिकों को जान कर आप उन बच्चों की मदद कर सकते हैं, जो आज भी स्कूल में हैं और इस विषय की वजह से स्कूल जाना नहीं चाहते। आईये मंजीत सिंह जी के वीडियो द्वारा समझते हैं गणित के कुछ तथ्य :-

Monday, July 31, 2017

अपनी टाईपिंग की रफ़्तार को बढ़ा दीजिए

इस वीडियो को देख कर आप अपनी टाईपिंग की रफ़्तार पाँच दिन में बढ़ा सकते हैंl

Friday, July 28, 2017


गूगल एड सेंस के द्वारा आप अपनी वेब और ब्लॉग से कैंसे धन अर्जित आकर सकते हैंl





Tuesday, July 25, 2017


Gucchi: Wild mushrooms from Himalayas worth their weight in gold Read more at: http://economictimes.indiatimes.com/articleshow/19007096.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst

Monday, July 24, 2017

फिर उठी वही नजर तुम्हारी
जिस नजर से तुमने छोड़ा था,
घर-गाँव, खेत-खलिहान,
अपने स्वार्थ के लिए!
आज फिर वही स्वार्थ
जागा है सायद तुम्हारा
क्योंकि तुम पक चुके हो
समय की आग में और
बन चुके हो फिर इंसान!
खोज रहे हो अपने धरातल को
स्वच्छ हवा पानी के घर को
कौन समझाए तुम्हें अब कैंसे
संभालोंगे इस भू तल के सौन्दर्य को।
तुम फिर चक्रव्यूह में उतर रहे हो
अर्जुन नही अभिमन्यु बन रहे हो
कर्त्तव्य नही कौशल जरूरी होता है
जीवन का क्या ये पल-पल में रोता है।
थक चुके हो सोच लो फिर, वक्त है
वक्त की दौड़ में वक्त ही कुचलेगा
स्वार्थ पीड़ा ने ठगा है फिर तुम्हें,
प्रकृति, पर्यावरण और पलायन को बदनाम मत कीजियेगा। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी

Monday, June 12, 2017


आधुनिक समय में डिजिटल का महत्व काफी बढ़ रहा है और आने वाले समय में सायद पुस्तकों का रूप भी बदल सकता है इसलिए हमें भी अपने लेखन को भी डिजिटल रूप देना चाहिए आईये आज सीखते हैं की ब्लॉग कैंसे बनायेंl



Wednesday, December 14, 2016

रफ्तार रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, देखो! गाँवों की ओर सड़कों की और शहरों की ओर लोगों की। रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, देखो! गाँवों की ओर अपराधों की ओर शहरों की ओर संस्कृति की। रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, देखो! गाँवों की व्यापार की, शहरों की और बेरोजगार की। रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, देखो! गाँवों की ओर विश्वास की, शहरों की ओर अविश्वास की। रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है देखो! गाँवों की ओर विनाश की शहरों की ओर विकास की । रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, देखो! शहरों की ओर इंसानियत की, गाँवों की ओर हैवानियत की। रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। @ - पंक्तियाँ, सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
गाँव बुढा हो चला है क्यों लौट रहे हो बर्षों बाद आँखों में आँसू लिए किसको ढूंढ रहे हो। गाँव बुढा हो चला है तुम भी घुटनों पर उठ कर गिर रहे हो, फिर आज यूँ क्यों लड़खड़ाते हुये कदम वापस बढ़ा रहे हो। गाँव बुढा हो चला है वो भूल चुका है तुम्हें तुम भी भूल चुके थे किसके लिए तुम पत्थर रख हृदय में यूँ वापस आ रहे हो। गाँव बुढा हो चला है अशिक्षित है मगर अपनी मातृभाषा को पहिचानता है तुम तो विदेशी भाषाओँ के बादशाह बन बैठे थे फिर क्यों लौट आये। @ - सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Friday, July 29, 2016

हर रंग का अपना जलवा है यहाँ,
तुम रंग अपना बिखेरो तो जाने।
हर कदम पर टूटते हैं यहाँ हौसले,
तुम हौसलों को संभालो तो जाने।
हर तरफ उठती है उँगलियाँ यूँ तो,
कभी उँगलियों पर उठो तो जाने।
हर निगाह टिकी है यूँ मंजिलों पर,
एक मंजिल तुम दिखा दो तो जाने। @ – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’

Wednesday, April 6, 2016

अंगारों सा कुछ यूँ जल रहा हूँ,


अब कौन सी राह मैं चल रहा हूँl 


अपना पराया है कौन यहाँ अब,


किसके लिए मैं यूँ पल रहा हूँl @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Wednesday, February 10, 2016

घर

मैं  निकल पडा हूँ, घर की तलाश में ! 
जहाँ बूढी अम्मा,
एक नई पीढ़ी को,
गाथाएँ सुनती हुई मिले l

मैं  निकल पडा हूँ,
घर की तलाश में ! 
जहाँ पर गूँज रही हो किलकारियाँ,
और महकता हुआ आँगन मिले l 

मैं  निकल पडा हूँ, 
घर की तलाश में ! 
जहाँ पर दीवारें गुनगुनाती हों,
मिट्टी के सौन्दर्य की कहानी, 
और एहसास न हो चार दिवारी का l  @ - रचना , सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Thursday, January 7, 2016

दर्द सिपनयों कु

तुमारी आँख्यों मा देखा,


आँसू च घुमणू।


गौं कु भुल्यूं बाटू दिदौं


आज यू खोजणू।


बितड़ग्याँ तुम विचारा,


शहर की हवा मा।


जिंदगी हिटणा हाँ,


डॉक्टरुई दवाय मा। - @ पंक्तियाँ सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Wednesday, January 6, 2016

फौजी

कब तक सीना छलनी यूँ सरहद पर, 

करवाता रहेगा अपना फौजी।

चुप बैठें हैं घौर तपोवन में जैंसे,

चिपके हैं कुर्सी पर दीमक बन कैंसे,

क्यों न सरहद पर कुछ बूँद लहू की, 

अब तुम भी दे दो जी । 

कब तक सीना छलनी यूँ सरहद पर, 

करवाता रहेगा अपना फौजी। @ पँक्तियाँ सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Monday, August 3, 2015

देखदा देखदी
कन बोन्ना छाँ,
सरा उत्तराखंडी
नेता बण्यां छाँ,
बीजेपी कांग्रेसन
घोल्याली रे,
उत्तराखंड कु
भोलू मन्खी,
पल्टयियों मा
छोल्याली रे।
कख होए, कन होए,
देखा धौन् रे,
यखुली मरुड़यों मा
रौंणू च रे'।
बोन्ना जै तैं
विकास छा तुम,
उ मवासी
मिटोणु च रे।
अपणी आंख्यों तै
अब सेंण न द्यान,
समाल्यी रख्याँ
सुप्न्यौं तै,
खतेंण न द्यान ! रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Friday, June 26, 2015

'यूँ तो हम पत्थर हैँ'


यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे
और रेतीली राह के स्तंभ हैँ
चेतन जगत की बात हो जब
पल-पल बदलते मौसम हैँ ।
किसी की ठोकर बन गये
बन गए किसी की पतवार
किसी ने यूँ रौँदा राह तले
बिखर गए जलते से अंगार ।
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे
डुबते हुए अश्को से निकले
सीख ले कोई हम से चलना
पल-पल यूँ आँख न मिचले ।
किसी ने लहरों मे भी छोड़ा
किसी ने मिट्टी मे दफनाया है
जिनकी नजरों ने चुबोए थे काँटे
उनकी आँखों ने ही अपनाया है ।
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे । - गीत @ सर्वाधिकार सुरक्षित एवं पूर्व प्रकाशित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Friday, February 6, 2015

बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
जाने कितनी ठोकर आएँ
पल पल यूँ तुम गिर भी पडोगे
रूकना नही है तुमको फिर भी
यूँ ही एक दिन शिखर चढोगे ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
कभी बिखरेगा विश्वास तुम्हारा
मिलता रहेगा एहसास दूवारा
तुम गति को अपनी रोक न देना
बहती धारा मे झोंक न देना ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
संकट तुमको मिलेगा जो
उस संकट के लिए तुम खुद संकट हो
इस धरती पर जीता वही है
इसान्यित जिस पर प्रकट हो ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ । रचना @ सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
देश का मुख्या उतर सड़क पर
क्यों इतना भय खाता है
ताकत कदमों मे है उसकी
तभी सरकार हिलाता है ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
कितनो ने छिनी रोटी हमारी
कितनो ने जन धन लुटे हैँ
बैठे हैँ जो संसद मे
उनके कितने मुखोटे है
आन पड़ी है अब सामत उनकी
एक एक कर सब घायल हैँ
विकासवादी भी भूल विकास को
नाच रहे बिन पायल हैँ ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है ।
पुलिस प्रशासन पग पग बाधा
भारत भूमि की मर्यादा है
स्वराज का नारा देने वाला
ये स्वराज तेरा कुछ ज्यादा है ।
कोई कहता आतंकी है
कोई उन्मादी बताता है
कोई भगोडा कहता उसको
कोई चंदा चोर बताता है । @ रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Wednesday, February 4, 2015

राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित 
वे जन सेवक क्या चाहाते हैँ 
झूठा है केजरिवाल फिर क्यों 
केजरिवाल से इतना घबराते हैँ 
तन क्षीण हुए इन सब के अब 
खाली संगठित का ढोंग रचाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या 
चाहाते हैँ ।
देख पग कोमल केजरी के
हर रोज काँटे बिछाते हैँ
खरोच खुद पर जब आती है
जन सेवक बन आँसू बहाते हैँ
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या 
चाहाते हैँ । 
खुद की ताकत को अपनी
हर रोज आँधी बताते हैँ
पतंगे बन के न जल जाएँ
भय
 इतना  केजरी से खाते हैँ 
राष्ट्र किया जिन्हें समर्पित
वे जन सेवक क्या 
चाहाते हैँ । @ रचना -सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Tuesday, February 3, 2015

मन का पंछी तैँ 
उड्ण द्या ज्याण द्या 
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा 
मंन का पंछी तैँ 
खाली ग्दरियोन् 
भ्रमान्दू पोथ्लू सी 
ज्याण द्या देख्णा रा 
देख्णा रा तुम देख्णा रा 
मंन का पंछी तैँ 
मन का पंछी तैँ 
उड्ण द्या ज्याण द्या 
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा 
मंन का पंछी तैँ 
बान्धण कैन च 
कैमु इथ्गा टैम च
मंन का पंछी तै 
मन का पंछी तैँ 
उड्ण द्या ज्याण द्या 
कथ्गा उड्लो देख्णा रा
देख्णा रा तुम देख्णा रा 
मंन का पंछी तै । @ गीत - सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

Sunday, February 1, 2015


यू आँसू आँखों भीटी टप टप,

टपकुदु रै यू सदानी 

दुःख आ होलू सुख आ होलू 

कैन जाणी कैन पछाणी 

यू आँसू आँखों भीटी टप टप,

टपकुदु रै यू सदानी l गीत @ सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 


Monday, January 12, 2015

संकुचित हो कर रह गये मेरे शब्द, 

बिखर कर कहाँ अब घर मिलेगा, 


पीड़ा हो जिसमें हर मौसम की,

 
उस आँगन मे अब फूल खिलेगा । @ - पंक्तियाँ सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।