Saturday, January 19, 2013

धरती

ये धरती कब क्या कुछ कहती है

सब कुछ अपने पर सहती है,

तूफान उड़ा ले जाते मिटटी,

सीना फाड़ के नदी बहती है !

सूर्यदेव को यूँ  देखो तो,

हर रोज आग उगलता है,

चाँद की शीतल छाया से भी,

हिमखंड धरा पर पिघलता है !

ऋतुयें आकर जख्म कुदेरती,

घटायें अपना रंग जमाती,

अम्बर की वो नीली चादर,

पल पल इसको रोज़ सताती !

हम सब का ये बोझ उठाकर,

परोपकार का मार्ग दिखाती,

सहन शीलता धर्मं है अपना,

हमको जीवन जीना सिखाती !  -  रचना  - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

















Thursday, January 17, 2013

हाइकू 

मेरी आँखों में 

मंजिल की राह है 

मुझे जीने दो ! - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Wednesday, January 9, 2013

आंसुओं का क्या है

जब तन दुखी हो,

जब मन ख़ुशी हो,

निकल आते हैं ये,

इन आंसुओं का क्या !

रोकें भी तो कैंसे इनको,

कोसें भी तो कैंसे इनको,

बिन जुवान के बोलते देखो,

हर भाव को तोलते देखो,

तश्वीर ही बन लेते हैं,

सुख दुःख को गौर से देखो !

कारण जो भी हो आने का,

संकेत उम्दा है दर्शाने का,

जो न बदला कभी हवा से,

ये वो आंसू है अपना सा का ! - रचना --- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'














Saturday, December 1, 2012

जग्गा जग्गा की ठोकरियोंन किस्मत जग्गैली,


पहाड़ मा शैहरी देखिक,
नेअथ बिगड़ जांदी,
आपणो की सुध नि च,
बीराणों तै चांदी !  बीराणों तै चांदी !

हंसदा खेलदा घरबार
छोड़ी आ जांदा,
हरीं भरीं पुंगडी पतवाडी,
शहर मा क्या पांदा !

माकन किरायाकू,
बिसैणु भी नि च,
कोठियों माँ धोणु भांडा,
बथैण भी कै मु च !

जग्गा जग्गा की ठोकरियोंन,
किस्मत जग्गैली,
चला पहाडू मेरा भाइयों, 
मिन बाटु खुज्जाली ! गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'





 

Monday, October 15, 2012

देश को बचाना है


है सौगंध तुम्हें भारत माँ की,
इस माटी पर उपकार करो,
लाज बचानी है माँ की अब 
तो संसद के उस पार चलो !

लोकतंत्र की अस्मत का देखो,
कैंसे चीथड़े-चिथड़े कर डाले हैं,
जनसंख्या दिखती नहीं उतनी,
जितने हर शहर में घोटाले हैं ! ....रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 



Wednesday, October 10, 2012

फूल को तोड़ लेते

निर्जीव पत्थर को हम , 

देव मानते चले हैं अपना, 

मुस्कराते फूल तोड़ कर, 

रोज करते है एक गुनाह !..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Thursday, October 4, 2012

अगर मैं रूक गयी तो


सोचो मेरे बारे में भी,
मैं थकने लगी हूँ अब,
सदियों से चलते चलते,
अब पाँव मेरे उखड़ने लगे हैं !

तुमने अपने जीवन को,
सरल सहज बना लिया है,
मेरे हर कदम को,
अदृश्य सा बना दिया है !

मेरा नहीं तो कम से कम 
अपना ख्याल कीजिये,
जो पौधे काट रहे हो,
उनको उगा भी दीजिये ! 

मेरा आँचल पौधे ही हैं,
मेरा जीवन है छाया,
लहर चले जब उसके तन की,
तब महके मेरी काया !

मैं महकूँ तो जग महकेगा,
मैं चलूँ तो जग मचलेगा,
मेरी लहर के हर पहलू में,
सब का जीवन चहकेगा .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

नोट : आज इन्सान अपने जीवन के लिए प्रकृति का हर प्रकार से दोहन कर रहा है, सब कुछ तो कृत्रिम बन रहा है .........लेकिन कभी इन्सान ने हवा और पानी के बारे में नहीं सोचा, जिन पर पूर्णरूप से जीवन निर्भर है, इस प्रस्थिति को देख कर आज हवा पर कुछ शव्द समिटे है आप सब मित्रों की प्रतिक्रिया मेरे इस शव्दों को आधार दे पायेगी  



सी यू ई टी (CUET) और बोर्ड परीक्षा का बोझ कब निकलेगा।

मेरा देश कहाँ जा रहा है। आँखें खोल के देखो।  सी यू ई टी ( CUET) के रूप में सरकार का यह बहुत बड़ा नकारा कदम साबित होने वाला है। इस निर्णय के र...