बापू तुम्हे आज वही पुकारते हैं,
हर चौरह पर तुम्हारे नाम से जो भागते हैं,
देते है वो दलील हिंद को बचाने की,
मगर तुम्हारे हर अंजाम को लांघते हैं !
खबर नहीं अपने क़दमों की उन्हें,
दुसरे के क़दमों को रोकते हैं,
तुम्हारी दी राह को कर अनदेखा,
गैरों की राह पर देश को झोकते हैं !
लुट कर अस्मत इस देश की
महल खुद के बनाते हैं,
कुर्सी हर हाल में हो उनकी,
बेटों को भी चुनाव लड़ते हैं !
गिद्ध सा झपटे हैं ये कुर्सी पर,
घोटालों का अम्बर लगते हैं,
ये कैंसी राह है अहिंसा की बापू,
तुम्हारे नाम पर देश को सताते हैं ! रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'