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Monday, October 15, 2012
Wednesday, October 10, 2012
Thursday, October 4, 2012
अगर मैं रूक गयी तो
सोचो मेरे बारे में भी,
मैं थकने लगी हूँ अब,
सदियों से चलते चलते,
अब पाँव मेरे उखड़ने लगे हैं !
तुमने अपने जीवन को,
सरल सहज बना लिया है,
मेरे हर कदम को,
अदृश्य सा बना दिया है !
मेरा नहीं तो कम से कम
अपना ख्याल कीजिये,
जो पौधे काट रहे हो,
उनको उगा भी दीजिये !
मेरा आँचल पौधे ही हैं,
मेरा जीवन है छाया,
लहर चले जब उसके तन की,
तब महके मेरी काया !
मैं महकूँ तो जग महकेगा,
मैं चलूँ तो जग मचलेगा,
मेरी लहर के हर पहलू में,
सब का जीवन चहकेगा .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
नोट : आज इन्सान अपने जीवन के लिए प्रकृति का हर प्रकार से दोहन कर रहा है, सब कुछ तो कृत्रिम बन रहा है .........लेकिन कभी इन्सान ने हवा और पानी के बारे में नहीं सोचा, जिन पर पूर्णरूप से जीवन निर्भर है, इस प्रस्थिति को देख कर आज हवा पर कुछ शव्द समिटे है आप सब मित्रों की प्रतिक्रिया मेरे इस शव्दों को आधार दे पायेगी
Wednesday, October 3, 2012
बापू तुम्हे आज पुकारते हैं
बापू तुम्हे आज वही पुकारते हैं,
हर चौरह पर तुम्हारे नाम से जो भागते हैं,
देते है वो दलील हिंद को बचाने की,
मगर तुम्हारे हर अंजाम को लांघते हैं !
खबर नहीं अपने क़दमों की उन्हें,
दुसरे के क़दमों को रोकते हैं,
तुम्हारी दी राह को कर अनदेखा,
गैरों की राह पर देश को झोकते हैं !
लुट कर अस्मत इस देश की
महल खुद के बनाते हैं,
कुर्सी हर हाल में हो उनकी,
बेटों को भी चुनाव लड़ते हैं !
गिद्ध सा झपटे हैं ये कुर्सी पर,
घोटालों का अम्बर लगते हैं,
ये कैंसी राह है अहिंसा की बापू,
तुम्हारे नाम पर देश को सताते हैं ! रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Saturday, September 29, 2012
ये खेल निराला है
टांग खिंच कर अपनों की,
जहाँ ख़ुशी मानते हैं लोग,
दे कर धोखा अपने को ही
करते चतुराई का उपयोग !
खरीद पोख्त का मायावी,
बढ रहा अब ये कारोबार,
गाँव गरीवों से नोट चुराकर,
करते खुल कर यहाँ व्यापर !
देश धर्म से ऊपर उठ कर,
खुद को कहते पालनहार,
वोट मांगने दर पर पहुंचे,
देखो इनको कितने लाचार !
बन विजयी देखो इनको,
लगते राणा के अवतार,
लुट पाट में गजनी बन बैठे,
भूल गए लोगों का उपकार !
बड़े बड़े महारथी यहाँ,
चोरी का तगमा पहने हैं,
पूती है कालिख हर चहरे पर,
अकेले अकेले ये सहमे है ! -!!!!! रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
नोट: शव्द सारांश
1. राणा - महाराणा प्रताप
2. गजनी - मोहमद गजनी
Monday, September 24, 2012
जन्म का कारण उदासी है
ह्रदय के उदासी आलम से,
कविता का जन्म होता है !
लोग पढ़ वाह वाही करते हैं,
हृदय बादल सा रोता है !
आँखों से निकलता ही नहीं नीर,
और कई पीर एहसासों में बह जाते हैं !
कोई बोलना ही नहीं चाहता मन की,
और शव्द फिर भी कह जाते हैं !
मगर दीखता है किस को ये,
लोग पढ़ कर चले जाते हैं !
शव्द हँसते हैं हमारे हमी पर,
हम को रोज़ चिढाते हैं !
मन की घुटन कहाँ दफ़न करें अब,
हर रोज़ शव्दों पे चिता लगाते हैं ! ........ रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Wednesday, September 19, 2012
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सी यू ई टी (CUET) और बोर्ड परीक्षा का बोझ कब निकलेगा।
मेरा देश कहाँ जा रहा है। आँखें खोल के देखो। सी यू ई टी ( CUET) के रूप में सरकार का यह बहुत बड़ा नकारा कदम साबित होने वाला है। इस निर्णय के र...
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जन जन से मिल कर शहर से निकल कर आती है सहमी सी आवाज की तुम मुझे बचालो! मुझे बचालो ! मुझे बचालो ! हर एक पहाड़ से टकराकर ...
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मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।