मेरी नज़र यूँ उठती गिरती है,
हर घटा से ये पूछती है,
हम से क्यों दूर हुआ ,
यूँ तेरा मुस्कराना !
क्या भूल हुई है हम से,
क्यों अधर तेरे यूँ रूठ गये,
निगाहों के हर तीर पे मेरे,
क्यों बेरहमी का ढाल लिए हो !
माना की हम से थी शिकायत तुम्हें,
माना की हम से थी शिकायत तुम्हें,
उमीदों को आपनी क्यों बेसहारा किये हो,
जख्म मिले हैं जो वफ़ा के हमें,
आंसू उनके खुद भी रो रहे हो !
न दुनिया हमने देखी थी कभी,
दर्द से इसके हम भी अनजान थे,
कब तक हँसे रोयें महफिल में,
कुछ दिन के ही तो मेहमान हैं ! ..रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'