Wednesday, August 13, 2014

माँ के चार रूपों की आज स्थिति स्त्री, गौ, धरती और भाषा

माँ के हर रूप को देखो 
ये कैंसे नोंच रहे हैं l
बैठे हैं हम शांत तपोवन में 
नजरें झुकाए क्या सोच रहे हैं ? 

कट रही गौ एक तरफ 
लुट रही लौ एक तरफ 
क्षीण हो रही दिव्या धरा की शाखाएँ 
मिट रही पल-पल अपनी ही भाषाएँ 
और हम मौन खड़े गूंगे बैठे हैं l 

माँ के हर रूप को देखो 
ये कैंसे नोंच रहे हैं l
बैठे हैं हम शांत तपोवन में 
नजरें झुकाए क्या सोच रहे हैं ? रचना सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 



Tuesday, August 12, 2014

भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l 
समेट रहे हैं पश्चिम को हर ओर 
और तिरंगा खुद का लहरा रहे हैं l 
लेटी हुई है शय्या पर भाषा और 
हम हिंदी के गुण गा रहे हैं l 
लेकर अग्नि हम हाथों में 
हिंदी को रोज जला रहे हैं l 
भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l 
है नहीं कोई रक्षक दल अपना
जो गौरव से अपनी भाषा बोले 
देखो दाग रहे हैं सीमा से 
अपनी भाषा पर  ही वो गोले l 
भूल कर मातृभाषा को हम
देश भक्त बनते जा रहे हैं l 
समेत रहे हैं पश्चिम को हर ओर 
और तिरंगा खुद का लहरा रहे हैं l - रचना सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी;' 

Saturday, July 26, 2014

कुछ लेखनियाँ घायल है कुछ खामोश हैं,  

बैठी सारकार जिनकी गोद में वो मदहोश हैं l - रचना सर्वाधिकार सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Thursday, July 24, 2014

उँगलियाँ

हर जगह हर मंच पर
मंडराती नजर आती हैं
ये तेरी उँगलियाँ l

किसी खोजी पत्रकार की तरह
हर बार बेद जाती हैं 
ये तेरी उँगलियाँ l

मिटटी पानी धरा मानव की क्या बात करूँ मैं
उस मनोहारी चाँद तक जा पँहुची
ये तेरी उँगलियाँ l

क्या छूटा इन से आजतक
पाक गीता कुरान तक भी जा पँहुची
ये तेरी उँगलियाँ l


कब कहाँ किसने की रोकने की
कोशिश और कौन रोक पाया
ये तेरी उँगलियाँ ! -रचना -सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Thursday, July 3, 2014

मेरे कदमो की आहाट से अब उनको डर लगने लगा,
जो कभी मेरे इन्तजार में आँखें बिछाए रहते थे l 
वही अब दिन-रात बेचैन रहते हैं अपने सपनों से ,
जो कभी छुपाये अपने ख्वाबों में हमें रहते थे l @ राजेंद्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Saturday, June 21, 2014

मैं तो घर ही ढूढने निकला था शहर में पर,

कई माकन मिले हैं मेरे साथियों के सफ़र में,

आँगन भी कुछ यूँ भरे थे गाड़ियों से,

और सिमटी हुई एक ओर मेरी खटिया पड़ी थी !! @ राजेंद्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


Wednesday, May 28, 2014

बिसरी कबार छ यू मन्खी 
डांडी कांठी डाली बौटली 
सुख का खातिर गै छ आपणा 
सुख का खातिर औणु बौडी 
अजी क्या बोना छाँ होवैगी विकास 
बांजी पुन्गुडी बौंण उदास l - गीत सर्वाधिकार सुरक्षित राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



सी यू ई टी (CUET) और बोर्ड परीक्षा का बोझ कब निकलेगा।

मेरा देश कहाँ जा रहा है। आँखें खोल के देखो।  सी यू ई टी ( CUET) के रूप में सरकार का यह बहुत बड़ा नकारा कदम साबित होने वाला है। इस निर्णय के र...