मुझ को भी नेता बनना है
कोई बता दे मुझको,
कहाँ, कब, क्या पढना है,
मैं भी अरमान सजाये बैठा,
मुझ को भी नेता बनना है !
झूट बोलकर ताली बजवाना,
मन को मेरे भी भाता है,
निकलूं जब चौराहे पर,
राही देख मुझे घबराता है !
भरी सभा में शोर मचाना,
ये तो पहले से ही आता है !
दो अपनों को कैंसे लड़ना,
ये कहाँ सिखा जाता है !
पहन कर खादी सच है क्या .?
आदमी नेता बनजाता है ! - रचना – राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’