Monday, May 28, 2012

इन्सान, इन्सान को खा रहा है


हे जमीं आसमां देख लो जरा 

ये नज़ारा हमें दर्पण दिखा रहा है। 

दो पल दो पल की ख़ुशी के लिए 

इन्सान, इन्सान को खा रहा है !

किताबों के दो शव्द उठा कर 

अपनी हंसी यूँ खिल खिला रहा है। 

चाँद पर पग क्या रखा 

खुद को मसीहा बता रहा है। 

खोद कर अपनी जड़ें ये 

मिटटी में उसे दबा रहा है 

कैंसे यकीं करें खुद पर हम,

जब इन्सान को इन्सान खा रहा है ........रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
  • नोट : कृपया इन्सान को इन्सान खा रहा का मतलब अन्यथा ना लें ये राजनीति के लिए प्रयोग किया गया है वाकी आप लोग साहित्य के जानकर हो ......... रस, छंद , अलंकार और शव्द शक्ति का कमाल भी समझते हो



मेरी तीन रचनाये विनोद भगवत जी के हिंदी साप्ताहिक 'शव्द दूत' के प्रथम संस्करण में प्रकाशित  

Friday, May 18, 2012

क्या चैदुं त्वे हे पहाड़


पहाडु तैं विकाश चैदुं

जनता तैं हिसाब चैदुं 
इन मरियुं यूँ नेताऊ कु 
युं दलालु तैं ताज चैदुं 
ठेकादारी युंकी खूब चलदी 
रुपयों पर युं तै ब्याज चैदुं 
गरीबु तै गास चैदुं 
बेरोज्गारू तै आस चैदुं
गोरु बाखरों तै घास चैदुं ........राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'



Thursday, May 17, 2012

ऑंखें 

इन आँखों के सामने से निकलता है सबेरा 
इन आँखों के सामने से निकलता है अँधेरा 
इन की ख़ामोशी पे गौर कीजियेगा 
इनको शिकवा फिर भी किसी से नहीं .............रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'








धरती तो लुट ली इंसानियत ने,
अब आसमां लुटने निकले है 
परिंदे भी क्या करें बेचारे,
अब अन्धेंरे से भी डरते हैं .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'  








चले तो किस से चलें 


पांवों से चलने को सफ़र कहते है लोग 
आँखों से चलें तो डगर कहते हैं लोग 
श्वांसों से चल दिए तो अफसाना 
और मन से चल दिए तो मस्ताना .......रचना- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 









Thursday, May 3, 2012

इन्सान तू क्या चाहता है रे

धरती तो लुट ली इंसानियत ने, 
अब आसमां लुटने निकले है 
परिंदे भी क्या करें बेचारे, 
अब अन्धेंरे से भी डरते हैं 
नदियों ने तो बहना छोड़ दिया 
घटाओं ने लहराना रोक दिया 
बहारों को क्या दोष दें हम 
जब इन्सान ने खुद यूँ ढाल दिया 
तूफान समुन्दर का भी डरने लगा है 
इन्सान के इस नजराने से 
मौत भी अब घबराने लगी है 
आज के इस विज्ञानं से 
सूरज की उगलती आग को 
इसने काबू कर लिया है 
चाँद की शीतल छा में 
इसने कदम रखलिया है 
उड़ते हुए बदल को ये 
निगाहों से निचोड़ने लगा है 
अपनी खुशियों के खातिर 
हिमालय को फोड़ने लगा है .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

सी यू ई टी (CUET) और बोर्ड परीक्षा का बोझ कब निकलेगा।

मेरा देश कहाँ जा रहा है। आँखें खोल के देखो।  सी यू ई टी ( CUET) के रूप में सरकार का यह बहुत बड़ा नकारा कदम साबित होने वाला है। इस निर्णय के र...