बिखरी पड़ी इन राहों को मैं
पहचान लेता हूँ !
कभी - कभी चल के दो कदम
इन से ज्ञान लेता हूँ !
पूरव पशिचमी उत्तर दक्षिण हर ओर शिखर है
ये जान लेता हूँ !
सब पर चलना आसन नहीं है
ये मान लेता हूँ !
बिखरी पड़ी इन राहों को मैं
पहचान लेता हूँ !