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Friday, May 18, 2012
Thursday, May 3, 2012
इन्सान तू क्या चाहता है रे
धरती तो लुट ली इंसानियत ने,
अब आसमां लुटने निकले है
परिंदे भी क्या करें बेचारे,
अब अन्धेंरे से भी डरते हैं
नदियों ने तो बहना छोड़ दिया
घटाओं ने लहराना रोक दिया
बहारों को क्या दोष दें हम
जब इन्सान ने खुद यूँ ढाल दिया
तूफान समुन्दर का भी डरने लगा है
इन्सान के इस नजराने से
मौत भी अब घबराने लगी है
आज के इस विज्ञानं से
सूरज की उगलती आग को
इसने काबू कर लिया है
चाँद की शीतल छा में
इसने कदम रखलिया है
उड़ते हुए बदल को ये
निगाहों से निचोड़ने लगा है
अपनी खुशियों के खातिर
हिमालय को फोड़ने लगा है .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
अब आसमां लुटने निकले है
परिंदे भी क्या करें बेचारे,
अब अन्धेंरे से भी डरते हैं
नदियों ने तो बहना छोड़ दिया
घटाओं ने लहराना रोक दिया
बहारों को क्या दोष दें हम
जब इन्सान ने खुद यूँ ढाल दिया
तूफान समुन्दर का भी डरने लगा है
इन्सान के इस नजराने से
मौत भी अब घबराने लगी है
आज के इस विज्ञानं से
सूरज की उगलती आग को
इसने काबू कर लिया है
चाँद की शीतल छा में
इसने कदम रखलिया है
उड़ते हुए बदल को ये
निगाहों से निचोड़ने लगा है
अपनी खुशियों के खातिर
हिमालय को फोड़ने लगा है .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Tuesday, May 1, 2012
मजदूर
मजबूर हूँ मजदूरी से पेट का
गुजरा अब हाथ से निकल रहा,
अब हम चुप कब तक रहे,
हृदय हमारा पिघल रहा,
मेहनत करके नीव रखी देश की,
अब सब बिफल रहा,
अपने हकों के लिए चुना नेता,
देखो हम को ही निगल रहा,
डिग्री लेकर कोई इंजिनियर
कुर्सी पर जो रोब जमता है
देखा जाय तो बिन मजदूर के
वो रेस का लंगड़ा घोडा है, ..........रचना- राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Friday, March 23, 2012
मेरे देश का क्या होगा
मन भ्रमित हैं सब के अब
आँखें झील सी लहराती
इक बेचारी राजनीति से
लड़खड़ाते भारतवासी
राम रहीम का देश था ये
शांति ही इसकी लाठी थी
दूसरों की खुशियों पे कुर्वानी
ऐंसी मेरे देश की थी माटी .........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
आँखें झील सी लहराती
इक बेचारी राजनीति से
लड़खड़ाते भारतवासी
राम रहीम का देश था ये
शांति ही इसकी लाठी थी
दूसरों की खुशियों पे कुर्वानी
ऐंसी मेरे देश की थी माटी .........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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