मेरा साथी वो सपना हैं,
तुम्हे लेकर जो आता है,
देख अधर की हंसी तुम्हारी,
मन भैरा सा गता है !
तुमने मुड़कर देखा ही कब,
फिर भी तुमको मित बनाऊं .
सपना भी ये कुछ पल का है,
इसको ही मैं गीत सुनाऊं !
जाने कौन पुकार सुने,
छोटे से इस वेबस मन की,
यहाँ विकता हैं ' दिल ' पैंसों में,
कौन सुने फिर मुझ निर्धन की !.....रचना ...राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'