दानी सयांणी आन्ख्यों छणी
पूछा रे पूछा पूछा
कख भीटि आई बथौं बणिक
यू रीति रिवाज कैकू च
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी !
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी
पूछा रे पूछा पूछा
नौउ विकाश कु ली तै चल्णु
कैकी खूटियों न हिटणु च
हरी भरीं कांठियों मा मेरी
विष बनिक रिटणु च
पूछा रे पूछा पूछा
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी !
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी
पूछा रे पूछा पूछा
भेल्य बिटौमा मोटर आगि
मन्खी यख भीटी भाग्णु च
गौ गुठ्यारू सब मुर्झागी शहर
हफार हैसणु च
पूछा रे पूछा पूछा
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी !
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी
पूछा रे पूछा पूछा
आई कख भीटि बथौं बणिक
यू रीति रिवाज कैकू च
गौं गैल्यी पुस्तैनी
मिटी गैनी आज
डामूका खातिर खुदेंन यी पाखी
निर्भागी पाणीन कु बिकरालअ रूप
बाबा केदार भी नि संभाल सकी
पूछा रे पूछा पूछा
यूँ दानी सयांणी आन्ख्यों छणी !
दानी सयांणी आन्ख्यों छणी
पूछा रे पूछा पूछा
आई कख भीटि बथौं बणिक
यू रीति रिवाज कैकू च
गैल्यी पुस्तैनी मिटी गैनी आज
डामूका खातिर खुदेंन यी पाखी
निर्भागी पाणीन कु बिकरालअ रूप
बाबा केदार भी नि संभाल सकी – गीत - राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी'
1 comment:
पहाड़ के दर्द की सुंदर अभिब्यक्ति.....
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