तुम्हें चलना है
मेरे नन्हें शव्दों
तुम्हें कागज पर उतर कर
विचलित नहीं होना !
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है!
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है !
तुम्हें ठहर कर कागज पर
भार नहीं बनना है
तुम्हें फैल कर कागज पर
दाग नहीं बनना है
तुम्हें रुक कर किसी की आँखों में
पीड़ा का अहसहस नहीं भरना है
तुम्हें रुक कर किसी तूफान में
विचलित मन नहीं करना है
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है!
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है !
तुम्हें सुबह की रोशनी पर चलना
तुम्हें साँझ की दुपहरी सा भी ढलना है
तुम्हें ऊँचे पहाड़ सा बनना है
तुम्हें दहकती आग सा जलना है
परन्तु तुम्हें ये याद रखना है
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है!
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है ! ..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
6 comments:
बहुत सुंदर...
ए कलम चलते जाना,
र्दद-ए-जमाने को यूँ ही उकेरते जाना।
बहुत खूब!!!
जरा यहाँ भी आते जाना
www.garhwalikavita.blogspot.com
nice bhai jaan
तुम्हें चलना है
मेरे नन्हें शव्दों ......बहुत सुंदर
http://bikharemotee.blogspot.com/
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
बहुत खूब प्रस्तुति
Post a Comment