Wednesday, February 22, 2012

तुम्हें चलना है

तुम्हें चलना है 
मेरे नन्हें शव्दों 
तुम्हें कागज पर उतर कर 
विचलित नहीं होना ! 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है! 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है ! 
तुम्हें ठहर कर कागज पर 
भार नहीं बनना है 
तुम्हें फैल कर कागज पर 
दाग नहीं बनना है 
तुम्हें रुक कर किसी की आँखों में 
पीड़ा का अहसहस नहीं भरना है 
तुम्हें रुक कर किसी तूफान में 
विचलित मन नहीं करना है 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है! 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है ! 
तुम्हें सुबह की रोशनी पर चलना 
तुम्हें साँझ की दुपहरी सा भी ढलना है 
तुम्हें ऊँचे पहाड़ सा बनना है 
तुम्हें दहकती आग सा जलना है 
परन्तु तुम्हें ये याद रखना है 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है! 
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है ! ..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'


6 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत सुंदर...

Mahendra S. Rana said...

ए कलम चलते जाना,
र्दद-ए-जमाने को यूँ ही उकेरते जाना।
बहुत खूब!!!
जरा यहाँ भी आते जाना
www.garhwalikavita.blogspot.com

प्यार नहीं, दुखो का अम्बार लिखता हु ,,, said...

nice bhai jaan

Dr.Anita Kapoor said...

तुम्हें चलना है
मेरे नन्हें शव्दों ......बहुत सुंदर
http://bikharemotee.blogspot.com/

सदा said...

वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

Dev said...

बहुत खूब प्रस्तुति

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