मन भ्रमित हैं सब के अब
आँखें झील सी लहराती
इक बेचारी राजनीति से
लड़खड़ाते भारतवासी
राम रहीम का देश था ये
शांति ही इसकी लाठी थी
दूसरों की खुशियों पे कुर्वानी
ऐंसी मेरे देश की थी माटी .........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
ब्लॉग में आपको अनेक विषय वस्तुओं पर जानकारियाँ मिलेंगी जैंसे Education, Technology, Business, Blogging आदि।
Friday, March 23, 2012
Tuesday, March 13, 2012
पत्थर भी बोलते हैं
टूट कर आज हिमालय भी
हमको आवाज लगाता है
मौन पड़े हैं वो जलप्रपात
उपवन का जो मन बहलाता है
कलरव चिड़ियों का
भोर नहीं ले कर आता
लाठी डंडे चीख पुकारें
रोज़ सवेरा अब ऐंसा आता
पहाड़ काट कर सड़कें बनती
नदियाँ रोक कर बनते बांध
खुद को ही छल रहा धरा पर
अबोध बना ये इन्सान
आसमान खामोश खड़ा है
सूरज तक हैं इस पर हैरान
तारे टूट पड़ते हैं धरती पर
चाँद ठगा सा लगता वेजान
हर मोड़ पर मनचले मिलते हैं
पग पग पर जल जले निकलते हैं
क्या होगा इस धरती का
अब पत्थर भी ये बोलते हैं ............रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Wednesday, February 22, 2012
तुम्हें चलना है
तुम्हें चलना है
मेरे नन्हें शव्दों
तुम्हें कागज पर उतर कर
विचलित नहीं होना !
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है!
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है !
तुम्हें ठहर कर कागज पर
भार नहीं बनना है
तुम्हें फैल कर कागज पर
दाग नहीं बनना है
तुम्हें रुक कर किसी की आँखों में
पीड़ा का अहसहस नहीं भरना है
तुम्हें रुक कर किसी तूफान में
विचलित मन नहीं करना है
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है!
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है !
तुम्हें सुबह की रोशनी पर चलना
तुम्हें साँझ की दुपहरी सा भी ढलना है
तुम्हें ऊँचे पहाड़ सा बनना है
तुम्हें दहकती आग सा जलना है
परन्तु तुम्हें ये याद रखना है
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है!
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है ! ..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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