Tuesday, June 7, 2011

मेरा साथी


मेरा साथी वो सपना हैं,
तुम्हे लेकर जो आता है,
देख अधर की हंसी तुम्हारी,
मन भैरा सा गता है !
तुमने मुड़कर देखा ही कब,
फिर भी तुमको मित बनाऊं .
सपना भी ये कुछ पल का है,
इसको ही मैं गीत सुनाऊं !
जाने कौन पुकार सुने,
छोटे से इस वेबस मन की,
यहाँ विकता हैं ' दिल ' पैंसों में,
कौन सुने फिर मुझ निर्धन की !.....रचना ...राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'   

Sunday, June 5, 2011

मेरे प्यारे अक्षर


मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझे बिखर ना जाना,
दुनिया के लिए धन दौलत सब कुछ,
मैं एक तुम्हारा हूँ परवाना !
मैंने तुम्हें किस कदर समेटता हूँ,
तुम! छोड़ कर मुझको बिखर ना जाना,
सारी खुशियाँ ठुकरा दी हैं,
आपनो का भी गैर हुआ,
सब के तीर सहे हृदय ने,
तब जाके ये शहर!  .......रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

यादों का सफर


घन छाये यादों के मेरे ऊपर,
अश्क आज पानी बरसते हैं,
ढल चुकी थी निशा हृदय में,
लौट कर फिर क्यों रवि आते हैं!
कितनी मधुर अभिलाषाएं लेकर,
मधुप     यूँ        मंडराते    हैं,
कुछ पल का सहारा देकर पुष्प,
क्यों सपनों को तोड़ जातें हैं!
हैं भटकते हम मुसाफिर बन कर,
जीवन के इस वीराने सफर में,
यादें रहती हैं एक नज़ारा बन कर 
जीवन के टूटे हुए इस दर्पण में !........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मेरी पाठशाला


नन्हा बच्चा बन कर तेरी,
गोद में मैं जब आया था,
आपने जैसे देख अनोकों,
मैं कितना हर्षाया था,
जल विहीन घट सा था मैं,
तुमने मुझको भर डाला,
एक अंधियारी रात्रि को
तुमने सबेरा दे डाला,
तेरी कृपा का हूँ आभारी,
नतमस्तक तुझे सदा माँ,
आँचल तेरा सबसे प्यारा,
देख चूका हूँ सारा जहाँ ........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

Tuesday, May 17, 2011

अभी अभी तो राह पकड़ी है,


मैं चलने को तैयार हुआ,
मन में कुछ उलझन सी है,
आवाज न दे कोई राह में मुझको
अभी अभी तो राह पकड़ी है!
सपने आपने कब सच होंगे,
हर मंजिल एक बसेरा है,
जीवन जिसको समझा था मैं,
वो दिन रात और सबेरा है !........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मन बिचलित क्यों होता हैं

मैं खड़ा हूँ एक चौराहे पर,


राह सभी मुझे बुला रही हैं,


सुन पुकार इन राहों की अब,


मन बिचलित क्यों होता हैं,


लेकर यादें जो आया था,
अब वे हाथ हिला रही हैं,


देखा अकेला राही मुझको,


गलियां सभी बुला रही हैं .......... रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर ' फरियादी'

Sunday, May 15, 2011

तलाश



दुंढते-दुंढते यूँ थक सा गया हूँ,

उम्र के जोर में पाक सा गया हूँ.
कहाँ-कहाँ न गुजरा उनके लिए,

जिन शब्दो को आज मैं तलाशता हूँ.
मैने अपनी वफ़ाओं  का जाल बिछाया,
पाने भर को उनके कदमो के निशा,

हर रंग मे पहले ही रंगी था मैं,
क्यो रंग दिखाते हैं मुझे ये जमी.
न जाने अब किस राह पर चलूँगा मैं,
भुला दूँ उनको या उपवास करूंगा मैं.
न दे आग कोई मुझे क्या,
‘फरियाद’ पे ही जलूँगा मैं........रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

मशरूम च्युं

मशरूम ( च्युं ) मशरूम प्राकृतिक रूप से उत्पन्न एक उपज है। पाहाडी क्षेत्रों में उगने वाले मशरूम।