आधुनिक समय में डिजिटल का महत्व काफी बढ़ रहा है और आने वाले समय में सायद पुस्तकों का रूप भी बदल सकता है इसलिए हमें भी अपने लेखन को भी डिजिटल रूप देना चाहिए आईये आज सीखते हैं की ब्लॉग कैंसे बनायेंl
ब्लॉग में आपको अनेक विषय वस्तुओं पर जानकारियाँ मिलेंगी जैंसे Education, Technology, Business, Blogging आदि।
Monday, June 12, 2017
Wednesday, December 14, 2016
रफ्तार
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की ओर सड़कों की
और शहरों की ओर लोगों की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की ओर अपराधों की
ओर शहरों की ओर संस्कृति की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की व्यापार की,
शहरों की और बेरोजगार की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! गाँवों की ओर विश्वास की,
शहरों की ओर अविश्वास की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है
देखो! गाँवों की ओर विनाश की
शहरों की ओर विकास की ।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है,
देखो! शहरों की ओर इंसानियत की,
गाँवों की ओर हैवानियत की।
रफ्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। @ - पंक्तियाँ, सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
गाँव
बुढा हो चला है
क्यों लौट रहे हो
बर्षों बाद आँखों में
आँसू लिए किसको
ढूंढ रहे हो।
गाँव
बुढा हो चला है
तुम भी घुटनों पर
उठ कर गिर रहे हो,
फिर आज यूँ क्यों
लड़खड़ाते हुये
कदम वापस बढ़ा रहे हो।
गाँव
बुढा हो चला है
वो भूल चुका है तुम्हें
तुम भी भूल चुके थे
किसके लिए तुम
पत्थर रख हृदय में
यूँ वापस आ रहे हो।
गाँव
बुढा हो चला है
अशिक्षित है मगर
अपनी मातृभाषा को
पहिचानता है
तुम तो विदेशी भाषाओँ के
बादशाह बन बैठे थे
फिर क्यों लौट आये। @ - सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Friday, July 29, 2016
Wednesday, July 13, 2016
Wednesday, April 6, 2016
Wednesday, February 10, 2016
घर
मैं निकल पडा हूँ, घर की तलाश में !
जहाँ बूढी अम्मा,
एक नई पीढ़ी को,
गाथाएँ सुनती हुई मिले lमैं निकल पडा हूँ,
घर की तलाश में !
जहाँ पर गूँज रही हो किलकारियाँ,
और महकता हुआ आँगन मिले l
मैं निकल पडा हूँ,
घर की तलाश में !
जहाँ पर दीवारें गुनगुनाती हों,
मिट्टी के सौन्दर्य की कहानी,
और एहसास न हो चार दिवारी का l @ - रचना , सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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