मनुष्य जितना आधुनिक होता जा रहा है उतना ही खुद को बड़ी बड़ी मुसीबतों में डाल रहा है। मनुष्य की प्रकृति सदैव अनुकरणीय रही है, वह जीवन जीने के लिए अपने आसपास के माहौल का सहारा सदियों से लेता आ रहा है। आज बात करते हैं अपने जीवन मे सबसे ज्यादा उयोग होने वाले इंटरनेट, स्मार्ट फोन, सोशियल मीडिया एप्प आदि की। अधिकांशतः हम लोग देखा देखी में ही इंटरनेट, स्मार्टफोन या सोशियल मीडिया जैंसे फेसबुक, व्हाट्सएप, टिक टॉक, या अन्य एप्प उपयोग करना शुरू कर देते हैं लेकिन बिना जानकारी के हम लोग बहुत से मिस्टेक कर बैठते हैं आईये जानते हैं इस वीडियो में उन भूलों की जानकारियाँ जिनसे हमें हानि हो सकती है।
ब्लॉग में आपको अनेक विषय वस्तुओं पर जानकारियाँ मिलेंगी जैंसे Education, Technology, Business, Blogging आदि।
Wednesday, August 7, 2019
Monday, August 5, 2019
पेपर और पुस्तक से वर्ल्ड की फाईल बनाना (News paper or books article in MS Word using Google convert any image to word document.
आज आप यहां से जानेंगे कि किसी भी न्यूज पेपर और पुस्तक की चित्र फाईल को गूगल ड्राईव के माध्यम से कैंसे एम एस वर्ड में परिवर्तित करें। यह कहने और सुनने में बहुत कठिन लगता है मगर थोड़ी सी जानकारी के माध्यम से यह बहुत सरल रास्ता बन जाता है। अक्सर हम लोगों को इस तरह की परेशानियों का सामना समय समय पर करना होता है। खासकर विद्यार्थी जीवन और रोजमर्रा की अपनी वर्किंग जीवन मे। आईये इस वीडियो से सीखते हैं।
Sunday, July 28, 2019
उँगलियों का क्या इन्हें नचाते रहो।
यदि आप अंग्रेजी की रोटी खा कर हिंदी से प्यास बुझाने की सोच रहे हो तो यह एक सपना भर है। शुद्ध हिंदी वालों को आजकल गार्ड इंटरव्यू वो क्या कहते है साक्षात्कार वाली क्यू अरे क्षमा लाईन या पंक्ति ठीक रहेगी खड़े भी नही होने देते, गेट फिर गलती हो गयी चारदीवारी के मुख दरवाजे से अन्दर घुसने से पहले रजिस्ट्रर में इंट्री करनी होती है हाँ इस पर कोई संयास नही होगा इसके लिए पाँचवी पास भी यही शब्द यूज करता है, और हम तो भारतीय हैं साईन शब्द हस्ताक्षर को खा चुका आप गिनिए अपने आप को हिंदी की पंक्ति में भाई हम तो मिक्सी में पड़े मसालों की तरह बन गये न हिंदी के रहे न अंग्रेजी के हुये। इसके बावजूद लोग हमें पहाड़ी कहते हैं थोड़ा लय का लिहाज है गुरु, बस उसके अलावा हमारे पास कुछ नही है जमी गीली है आसमाँ टपक रहा है। आखिर कब तक पेड़ों की छाया में धूप से बचते रहेंगे। हमें तो बिना रोटी और चावल खाये नींद भी नही आती। तुम क्या जानो साँस कैंसे लेते हैं बाँसुरी की धुन भी साँस की पैरवी करती है। उँगलियों का क्या! इन्हें नचाते रहो। जय हो।
#बिखरेअक्षरोंकासंगठन
#बिखरेअक्षरोंकासंगठन
Friday, July 26, 2019
******* अक्षर *******
किस्मत तुम्हारी भी नही
किस्मत हमारी भी नही
कितना चाहो बिखर जाओ
पर रहोगे सदैव पंक्तियों में।
किस्मत तुम्हारी भी नही
किस्मत हमारी भी नही
पीढ़ियाँ कितनी बदल दो
पर रहोगे सदैव गिनतियों में। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
किस्मत हमारी भी नही
कितना चाहो बिखर जाओ
पर रहोगे सदैव पंक्तियों में।
किस्मत तुम्हारी भी नही
किस्मत हमारी भी नही
पीढ़ियाँ कितनी बदल दो
पर रहोगे सदैव गिनतियों में। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Monday, July 8, 2019
अभिरुचि शिक्षा
दुनियाँ में हर इंशान के अंदर भिन्न भिन्न अभिरुचियों के सैलाव अंगड़ाई लेते रहते हैं यदि आप इनको पकड़ पाते हैं तो निश्चित ही आप रचनात्मक अभिरुचि के परम साधक बन सकते हैं। समय और उम्र के अनुरूप हर जीव की रुचि परिवर्तित होती रहती है इन सभी प्रकृति परिवर्तनों के बावजूद भी यदि अभिरुचि व्यक्ति को अपनी ओर खींचती हो तो निश्चित आपकी मंजिल उधर ही है। शिक्षा के साथ साथ रचनात्मकता का निखार होना भी अति आवश्यक है आज यदि टेक्नोलॉजी पर गहराई से नजर दौड़ाई जाय तो रचनात्मकता ज्यादा प्रभावी है यही उत्कृष्ट सफलता का मूल राज भी है। आज जानते हैं नागार्जुन संदुपतला जी द्वारा बाँसुरी पर उँगलियों की चाल को कैंसे प्रभावी बनाया जाय। फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब के साथ साथ जितने भी सोशियल मीडिया है यदि हम उनका उचित उपयोग कर पायें तो आजीविका का भी एक साधन हमारे पास उपलब्ध हो सकता है।
#बाँसुरी
#शिक्षा
#स्कूल
#गुरुकुल
#अभिरुचि
#शिक्षा
#स्कूल
#गुरुकुल
#अभिरुचि
Tuesday, July 2, 2019
Monday, July 1, 2019
तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया।
पग पग पर बैठे हैं सब वो
मान लूँ कैंसे तुम ही रब हो।
शक्ल सूरत के भंडार नही हैं
जलते क्यों हो अँगार नही हैं।
तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया।
बहते जल सा है निर्मल मन
गीली मिट्टी है चर्चित ये तन।
कभी धुलता है कभी घुलता है
रहो किनारे यूँ करो जतन।
धूप छाव को लेकर चलते
तन-मन को लेप न करते।
नजरों के इन पहरों पर तो
कैंसे हम यूँ खेद न करते।
तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया।
पग पग पर बैठे हैं सब वो
मान लूँ कैंसे तुम ही रब हो।
शक्ल सूरत के भंडार नही हैं
जलते क्यों हो अँगार नही हैं।
तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया।
बहते जल सा है निर्मल मन
गीली मिट्टी है चर्चित ये तन।
कभी धुलता है कभी घुलता है
रहो किनारे यूँ करो जतन।
धूप छाव को लेकर चलते
तन-मन को लेप न करते।
नजरों के इन पहरों पर तो
कैंसे हम यूँ खेद न करते।
तुम आते हो यादों में क्यों
ऐंसा कौन सा काम किया,
बातें की थी बातों का क्या
क्यों सपनों को थाम लिया। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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