बीमार सा कुछ तन लगता है,
बीरान सा कुछ मन लगता है।
खिला रही है जिंदगी फिर से,
क्यों ऐंसा ये स्वपन लगता है।
ये मौसम भी बदलता है ऐंसे,
मेघों को छोड सूरज पकड़ता है।
चिपकता है कीचड़ सा पाँव में,
मिट्टी को छोड रफ्तार जकड़ता है। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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