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Wednesday, April 6, 2016
Wednesday, February 10, 2016
घर
मैं निकल पडा हूँ, घर की तलाश में !
जहाँ बूढी अम्मा,
एक नई पीढ़ी को,
गाथाएँ सुनती हुई मिले lमैं निकल पडा हूँ,
घर की तलाश में !
जहाँ पर गूँज रही हो किलकारियाँ,
और महकता हुआ आँगन मिले l
मैं निकल पडा हूँ,
घर की तलाश में !
जहाँ पर दीवारें गुनगुनाती हों,
मिट्टी के सौन्दर्य की कहानी,
और एहसास न हो चार दिवारी का l @ - रचना , सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Thursday, January 7, 2016
दर्द सिपनयों कु
तुमारी आँख्यों मा देखा,
आँसू च घुमणू।
गौं कु भुल्यूं बाटू दिदौं
आज यू खोजणू।
बितड़ग्याँ तुम विचारा,
शहर की हवा मा।
जिंदगी हिटणा हाँ,
डॉक्टरुई दवाय मा। - @ पंक्तियाँ सर्वाधिकार, सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Wednesday, January 6, 2016
फौजी
कब तक सीना छलनी यूँ सरहद पर,
करवाता रहेगा अपना फौजी।
चुप बैठें हैं घौर तपोवन में जैंसे,
चिपके हैं कुर्सी पर दीमक बन कैंसे,
क्यों न सरहद पर कुछ बूँद लहू की,
अब तुम भी दे दो जी ।
कब तक सीना छलनी यूँ सरहद पर,
करवाता रहेगा अपना फौजी। @ पँक्तियाँ सर्वाधिकार सुरक्षित, राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Monday, August 3, 2015
देखदा देखदी
कन बोन्ना छाँ,
सरा उत्तराखंडी
नेता बण्यां छाँ,
बीजेपी कांग्रेसन
घोल्याली रे,
उत्तराखंड कु
भोलू मन्खी,
पल्टयियों मा
छोल्याली रे।
कख होए, कन होए,
देखा धौन् रे,
यखुली मरुड़यों मा
रौंणू च रे'।
बोन्ना जै तैं
विकास छा तुम,
उ मवासी
मिटोणु च रे।
अपणी आंख्यों तै
अब सेंण न द्यान,
समाल्यी रख्याँ
सुप्न्यौं तै,
खतेंण न द्यान ! रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
कन बोन्ना छाँ,
सरा उत्तराखंडी
नेता बण्यां छाँ,
बीजेपी कांग्रेसन
घोल्याली रे,
उत्तराखंड कु
भोलू मन्खी,
पल्टयियों मा
छोल्याली रे।
कख होए, कन होए,
देखा धौन् रे,
यखुली मरुड़यों मा
रौंणू च रे'।
बोन्ना जै तैं
विकास छा तुम,
उ मवासी
मिटोणु च रे।
अपणी आंख्यों तै
अब सेंण न द्यान,
समाल्यी रख्याँ
सुप्न्यौं तै,
खतेंण न द्यान ! रचना - सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Friday, June 26, 2015
'यूँ तो हम पत्थर हैँ'
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे
और रेतीली राह के स्तंभ हैँ
चेतन जगत की बात हो जब
पल-पल बदलते मौसम हैँ ।
और रेतीली राह के स्तंभ हैँ
चेतन जगत की बात हो जब
पल-पल बदलते मौसम हैँ ।
किसी की ठोकर बन गये
बन गए किसी की पतवार
किसी ने यूँ रौँदा राह तले
बिखर गए जलते से अंगार ।
बन गए किसी की पतवार
किसी ने यूँ रौँदा राह तले
बिखर गए जलते से अंगार ।
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे
डुबते हुए अश्को से निकले
सीख ले कोई हम से चलना
पल-पल यूँ आँख न मिचले ।
डुबते हुए अश्को से निकले
सीख ले कोई हम से चलना
पल-पल यूँ आँख न मिचले ।
किसी ने लहरों मे भी छोड़ा
किसी ने मिट्टी मे दफनाया है
जिनकी नजरों ने चुबोए थे काँटे
उनकी आँखों ने ही अपनाया है ।
किसी ने मिट्टी मे दफनाया है
जिनकी नजरों ने चुबोए थे काँटे
उनकी आँखों ने ही अपनाया है ।
यूँ तो हम पत्थर हैँ राह मे । - गीत @ सर्वाधिकार सुरक्षित एवं पूर्व प्रकाशित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
Friday, February 6, 2015
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
जाने कितनी ठोकर आएँ
पल पल यूँ तुम गिर भी पडोगे
रूकना नही है तुमको फिर भी
यूँ ही एक दिन शिखर चढोगे ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
पल पल यूँ तुम गिर भी पडोगे
रूकना नही है तुमको फिर भी
यूँ ही एक दिन शिखर चढोगे ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
कभी बिखरेगा विश्वास तुम्हारा
मिलता रहेगा एहसास दूवारा
तुम गति को अपनी रोक न देना
बहती धारा मे झोंक न देना ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
मिलता रहेगा एहसास दूवारा
तुम गति को अपनी रोक न देना
बहती धारा मे झोंक न देना ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ ।
संकट तुमको मिलेगा जो
उस संकट के लिए तुम खुद संकट हो
इस धरती पर जीता वही है
इसान्यित जिस पर प्रकट हो ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ । रचना @ सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
उस संकट के लिए तुम खुद संकट हो
इस धरती पर जीता वही है
इसान्यित जिस पर प्रकट हो ।
बदल रही हैँ रूख हवाएँ
बादल आने जाने हैँ
बढ़ते रहो तुम राह पर अपने
मौसम सब बेगाने हैँ । रचना @ सर्वाधिकार, सुरक्षित - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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