छू लेता हूँ कभी कभी
इन शब्दों के बंधन को
समेट ने की कोशिश भर है
बस मन-मंथन के क्रंदन को।
छू लेता हूँ!
कहानियाँ समेटना
बस की न मेरी बात है
औकात है हर शब्द की
हमारी क्या बिसात है। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
इन शब्दों के बंधन को
समेट ने की कोशिश भर है
बस मन-मंथन के क्रंदन को।
छू लेता हूँ!
कहानियाँ समेटना
बस की न मेरी बात है
औकात है हर शब्द की
हमारी क्या बिसात है। @ - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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