धुँआ जलते जिगर का देखते है कहाँ कब किसी ने,
अँगार सा जलता है ये और लोग देखते हैं पसीने,
जख्म इतने है बने विन खंजर के इस तन पे,
एक एक को कुरेदा है हर एक सदी ने ! गीत @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
अँगार सा जलता है ये और लोग देखते हैं पसीने,
जख्म इतने है बने विन खंजर के इस तन पे,
एक एक को कुरेदा है हर एक सदी ने ! गीत @ राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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