नमन करूँ मैं इस धरती माँ को,
जिसने मुझको आधार दिया,
पल पल मर कर जीने का
सपना ये साकार किया !
हिम शिखर के चरणों से मैं,
दुःख मिटाने निकला था,
किसी ने रोका मुझे भंवर में,
कोई प्यासा दूर खड़ा था !
कभी आँखों से टपका मैं,
कभी बादल बनकर बरसा हूँ,
कभी सिमट कर इस माटी में,
नदी नालों में बहता हूँ !
कब कहाँ किसके काम आऊँ,
मैं कहाँ इतना ज्ञानी हूँ,
सब के तन मिटे इस माटी में,
मैं तो फिर भी पानी हूँ ! – रचना –
राजेन्द्र सिंह कुँवर ‘फरियादी’
5 comments:
अंतस को छू जाती बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
सुंदर अभिव्यक्ति .......
आप भी पधारो स्वागत है ..
http://pankajkrsah.blogspot.com
bahut sundar bhaavpoorn panktiyaan aapki ...
saadar
jyotsna sharma
क्या कहू राजेन्द्र जी आखों से पानी निकाल दिया आप ने ----किसी ने रोका मुझे भंवर में --क्या बात है
Wah!!!!!!!!!
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