टांग खिंच कर अपनों की,
जहाँ ख़ुशी मानते हैं लोग,
दे कर धोखा अपने को ही
करते चतुराई का उपयोग !
खरीद पोख्त का मायावी,
बढ रहा अब ये कारोबार,
गाँव गरीवों से नोट चुराकर,
करते खुल कर यहाँ व्यापर !
देश धर्म से ऊपर उठ कर,
खुद को कहते पालनहार,
वोट मांगने दर पर पहुंचे,
देखो इनको कितने लाचार !
बन विजयी देखो इनको,
लगते राणा के अवतार,
लुट पाट में गजनी बन बैठे,
भूल गए लोगों का उपकार !
बड़े बड़े महारथी यहाँ,
चोरी का तगमा पहने हैं,
पूती है कालिख हर चहरे पर,
अकेले अकेले ये सहमे है ! -!!!!! रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
नोट: शव्द सारांश
1. राणा - महाराणा प्रताप
2. गजनी - मोहमद गजनी
3 comments:
दे कर धोखा अपने को ही
करते चतुराई का उपोयोग
!
रघुपति सदा चली आयी
बहुत अच्छी प्रस्तुति ! मात्राओं में हो गयी टंकण अशुद्धियों को ठीक कर लें !
बहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.
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