धरती तो लुट ली इंसानियत ने,
अब आसमां लुटने निकले है
परिंदे भी क्या करें बेचारे,
अब अन्धेंरे से भी डरते हैं
नदियों ने तो बहना छोड़ दिया
घटाओं ने लहराना रोक दिया
बहारों को क्या दोष दें हम
जब इन्सान ने खुद यूँ ढाल दिया
तूफान समुन्दर का भी डरने लगा है
इन्सान के इस नजराने से
मौत भी अब घबराने लगी है
आज के इस विज्ञानं से
सूरज की उगलती आग को
इसने काबू कर लिया है
चाँद की शीतल छा में
इसने कदम रखलिया है
उड़ते हुए बदल को ये
निगाहों से निचोड़ने लगा है
अपनी खुशियों के खातिर
हिमालय को फोड़ने लगा है .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
अब आसमां लुटने निकले है
परिंदे भी क्या करें बेचारे,
अब अन्धेंरे से भी डरते हैं
नदियों ने तो बहना छोड़ दिया
घटाओं ने लहराना रोक दिया
बहारों को क्या दोष दें हम
जब इन्सान ने खुद यूँ ढाल दिया
तूफान समुन्दर का भी डरने लगा है
इन्सान के इस नजराने से
मौत भी अब घबराने लगी है
आज के इस विज्ञानं से
सूरज की उगलती आग को
इसने काबू कर लिया है
चाँद की शीतल छा में
इसने कदम रखलिया है
उड़ते हुए बदल को ये
निगाहों से निचोड़ने लगा है
अपनी खुशियों के खातिर
हिमालय को फोड़ने लगा है .......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
4 comments:
बहारों को क्या दोष दें हम
जब इन्सान ने खुद यूँ ढाल दिया
तूफान समुन्दर का भी डरने लगा है
बहुत सुंदर भावपूर्ण
अब तो भगवान भी धरती पर जन्म लेने से डरने लगा
प्रकृति का दर्द आपकी रचना में
स्पष्ट दिख रहा है...
घोरो ना पानी
पानी में रंगों की
रंग भरी डिबियाँ
पिचकारी भरो ना
कपोलों मलो ना
अबीरी अँजुरियाँ
तुम्हारे रंगों में रंगा है जिया !
आई है होली
अंखियों से खेलें
बनकर रंगोली
फिजाओं ने
आँचर भिंगोया
अंगिया गुलाबी आगी लगी है
बाँहों के झूले झुलाओ पिया !
मेरे अपने सभी सुधि पाठक ,सुधि श्रोता और नवोदित, वरिष्ठ,तथा मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों को समर्पित आज का यह नवगीत फागुनी उमंगों का गीत है आशा करता हूँ ! आपको भी तरंगायित करने में सफल होगा !
साहित्यिक अर्ध भोर रात्रि की सुन्दरतम शीतल बासंती बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकरण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्पर ...
घोरो ना पानी
पानी में रंगों की
रंग भरी डिबियाँ
पिचकारी भरो ना
कपोलों मलो ना
अबीरी अँजुरियाँ
तुम्हारे रंगों में रंगा है जिया !
आई है होली
अंखियों से खेलें
बनकर रंगोली
फिजाओं ने
आँचर भिंगोया
अंगिया गुलाबी आगी लगी है
बाँहों के झूले झुलाओ पिया !
शतरंगी रंगों से रंगी है
भीतर की दुनियाँ
आँखों कमल दल
पलकें पलाशी
कोरों का काजल
गुलाबी बनाओ
जूड़े में मेरे गज़रा सजाओ,
अंतर में गूंजे
प्राणों में घोले
मेहंदी की रंगत
ओंठों को नदिया
मन को मछरिया
तन को तलैया
भगोरिया वनों की कोयलिया बनाओ,
हल्दी की उबटन
फागुन का चन्दन
बांगों में फूलों के मेले
ख्वाबों की गाडी में
हम हों अकेले
अनुरागी ताड़ी
पी के मस्ती में हांको पिया !
घोरो ना पानी
पानी में रंगों की
रंग भरी डिबियाँ
पिचकारी भरो ना
कपोलों मलो ना
अबीरी अँजुरियाँ
तुम्हारे रंगों में रंगा है जिया !
आई है होली
अंखियों से खेलें
बनकर रंगोली
फिजाओं ने
आँचर भिंगोया
अंगिया गुलाबी आगी लगी है
बाँहों के झूले झुलाओ पिया !
गा गा कर बाहर
बिस्तर के किस्से
चादर की सिलवट
विज्ञापन बनाकर
दिखाओ टँगाओ न
चौराही बरगद के ऊपर
फागुन को सौंपो फागुनियाँ रागें,
परती दिलों में
बरसो न बनकर
बरसाती बादल
उगेगी थूहर भयानक
अबीरों की आभा
गुलालों की लाली
चुटकी भर सेंधुर हम तुमसे मांगे,
फूहर है भाषा
फूहर है बोली
रंगों की होली मुह भर ठिठोली
कामकेलि रागिनी
चौपाली चरचा
फरका गली में
मतवाली मोरिनी नचाओ पिया !
घोरो ना पानी
पानी में रंगों की
रंग भरी डिबियाँ
पिचकारी भरो ना
कपोलों मलो ना
अबीरी अँजुरियाँ
तुम्हारे रंगों में रंगा है जिया !
आई है होली
अंखियों से खेलें
बनकर रंगोली
फिजाओं ने
आँचर भिंगोया
अंगिया गुलाबी आगी लगी है
बाँहों के झूले झुलाओ पिया !
आगी लगी है
कोठवा की छानी
बुझती नहीं है बदरी की बानी
चलनी में चालो न
मटकी का दूध मिला पानी
चुल्लू भर सींचो
तो प्यास बुझे मन की,
नदियों नहाई
पलाशी वनों से
फगुआ की रस्में निभाती
मादल नगाड़ों की
मनचली कोरस रसीली
कंचुकी की चौकड़ी
भूल गई सीमायें तन की,
धानी चुनरिया
रंगों से लथपथ
अंगों से लपटी
होली के उत्सव
अधरों में मुक्त हंसी लहरी
भीतरी गोवर्धन
उंगली में अपने उठाओ पिया !
घोरो ना पानी
पानी में रंगों की
रंग भरी डिबियाँ
पिचकारी भरो ना
कपोलों मलो ना
अबीरी अँजुरियाँ
तुम्हारे रंगों में रंगा है जिया !
आई है होली
अंखियों से खेलें
बनकर रंगोली
फिजाओं ने
आँचर भिंगोया
अंगिया गुलाबी आगी लगी है
बाँहों के झूले झुलाओ पिया !
भोलानाथ
डॉराधा कृष्णन स्कूल के बगल में
अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर
जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत
संपर्क – ८९८९१३९७६३
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