Sunday, June 5, 2011

यादों का सफर


घन छाये यादों के मेरे ऊपर,
अश्क आज पानी बरसते हैं,
ढल चुकी थी निशा हृदय में,
लौट कर फिर क्यों रवि आते हैं!
कितनी मधुर अभिलाषाएं लेकर,
मधुप     यूँ        मंडराते    हैं,
कुछ पल का सहारा देकर पुष्प,
क्यों सपनों को तोड़ जातें हैं!
हैं भटकते हम मुसाफिर बन कर,
जीवन के इस वीराने सफर में,
यादें रहती हैं एक नज़ारा बन कर 
जीवन के टूटे हुए इस दर्पण में !........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' 

1 comment:

Mohan Bisht-Thet Pahadi said...

bahut hi suder dajyu great really..

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