दुंढते-दुंढते यूँ थक सा गया हूँ,
उम्र के जोर में पाक सा गया हूँ.
कहाँ-कहाँ न गुजरा उनके लिए,
जिन शब्दो को आज मैं तलाशता हूँ.
मैने अपनी वफ़ाओं का जाल बिछाया,
पाने भर को उनके कदमो के निशा,
हर रंग मे पहले ही रंगी था मैं,
क्यो रंग दिखाते हैं मुझे ये जमी.
न जाने अब किस राह पर चलूँगा मैं,
भुला दूँ उनको या उपवास करूंगा मैं.
न दे आग कोई मुझे क्या,
‘फरियाद’ पे ही जलूँगा मैं........रचना-राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
4 comments:
Very nice Rajendra ji - Vinay Dobhal, Owner: aboutUttarakhand.com (http://www.aboutUttarakhand.com)
बहुत खूब ..बेहतरीन रचना उतने ही सुन्दर तस्वीर सहित...बहुत सुन्दर है आपका ब्लॉग शुभकामनायें !!!
राजेंद्र जी ...बहुत खूब नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!!
spdimri.blogspot.com
अच्छी
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