मैं चलने को तैयार हुआ,
मन में कुछ उलझन सी है,
आवाज न दे कोई राह में मुझको
अभी अभी तो राह पकड़ी है!
सपने आपने कब सच होंगे,
हर मंजिल एक बसेरा है,
जीवन जिसको समझा था मैं,
वो दिन रात और सबेरा है !........रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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2 comments:
जब राह पकड़ी है तो मंजिल भी ज़रूर मिलेगी...सुन्दर प्रस्तुति
http://batenkuchhdilkee.blogspot.com
जीवन जिसको समझा था मैं,
वो दिन रात और सबेरा है !
....
बहुत सुंदर
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